जैन का अर्थ हैं ! जिनआज्ञा यानि परमात्मा कि आज्ञा का पालन करना। लेकिन जब परमात्मा कि आज्ञा क्या है। यह ही नहीं पता तो मानेंगे कैसे? बस जैन कुल में पैदा हुए और जैन बन गए? और अपने आप पर बढ़ा गर्व करते हैं। लेकिन इस बात पर शर्म नहीं हैं कि जिनआज्ञा का पालन नहीं कर रहे हैं। बल्कि दुसरे धर्मो के व्रत, उपवास, पूजा हम बड़ी शान से करते हैं।
ज्यो रात में रखना धर्म माना जाता हैं, चर्च, मस्जिद में जाना चालू कर दिया।
अरे हद तो तब हो गई जब जैन धर्म कि लडकिया भाग कर दुसरे धर्म के लड़के के साथ शादी करके नॉन-वेझ (non-veg) बनाने आदि खाने लग गई।
कहाँ गई इन्सानियत ध्धिकार है ऐसे मानव भाव को।
याद करें हमारे पूर्वजो को जिन्होंने हमे नॉन-वेझ (non-veg) छुडवाकर जैन बनाया
आज की इस बढती हुई परिस्थिती के जिम्मेदार भी हम ही हैं। आज के माता-पिता इतने बिजी है कि उन्हें यह तक नहीं पता कि उनले बच्चे क्या कर रहे हैं। वे खुद फैशन के इस दौर में झुड गए हैं कि बहुत आराम से बोलते हैं फ्री (free) होना चाइए, फ्रैंक (frank) होना चाइए,
जमाना बदल गया हैं।
जमाना बदला किसने? हमने ही ना! और दोष ज़माने को। इसी सोच को सब लोगो ने अपना रखा हैं, सही सोच के लिए व्यक्ति के पास तो टाइम ही नहीं हैं। बच्चो को संस्कार के जगह फैशन का चोला दे रखा हैं ओ खुद भी उसके ही भक्त हैं।