५/७ साल पहले की यह सत्य घटना है। सूरत से लगभग १५० किलोमीटर दूर एक गांव है। २८ साल का जवान कलियुग की हवा से धर्मविरोधी था।संघ हर माह अंगलुछना नया मंगाता था। ऐसी सामान्य बात के बारे में भी निंदा करता था । कहता था कि भगवान को अंगलुछना नया-अच्छा?
इसकी क्या जरूरत है? इस तरह धर्म के हर काम में विरोध करता रहता। भरजवानी में उसे आंत का कैंसर हुआ।खूब परेशान होता था। कारण समझ गया। परिवारजनों से ट्रस्टीयो को बुलाकर कहा, “मैने संघ और धर्म की खूब आशातना की है। उसका फल भुगत रहा हूं। फिर भी मुझे आश्वासन है कि पाप का फल यहां मिल रहा है। उतने मेरे पाप कम हो रहे हैं। वेदना और मौत का मुझे डर नहीं।लेकिन सर्वत्र सभी को मेरा उदाहरण देकर मेरी ओर से कहना कि प्रभु, धर्म,संघ आदि की आशातना कभी नहीं करना।” है जैनो! हो सके उतना धर्म करना लेकिन देव,गुरु, धर्म की निंदा तो कभी मत करना।