“लोभ पाप को बाप बखानो “
लोभ को पांच पापों में सबसे उपर रखा गया है, उसे पाचों पाप का बाप कहां गया है. लोभ के कारण ही हम संसार में भटक रहे है.
लोभ क्या है ?
उदा. भूख दस रोटी की हो और मनुष्य को पाँच ही रोटी मिले तो भी कम से कम आधी भूख शांत हो जाती है. अगर प्यास दो गिलास पानी की हो और इन्सान को एक ही गिलास पानी मिले तो भी कम से कम आधी प्यास तो मिट जाती है. परन्तु लोभ की भूख इसके विपरीत है.
लोभ की भूख अगर एक करोड. की हो और इन्सान को पचास लाख मिल जाएं तो उसकी भूख आधी नही बल्कि दो गुनी याने दो करोड़ की हो जाती है. ऐसा स्वयं का अनुभव होते हुये भी इन्सान जब लोभ की भूख शांत करने के प्रयास में अनवरत दौड़ता हुआ दिखाई देता है. तब अत्यन्त आश्चर्य होता है. ऐन केन प्रकारेन आना ही आना चाहिये जाना नही.
ऐसा क्यों ?
मनुष्य मकान ऐसा पसंद करता है जिसमें एक खिड़की से हवा आती हो और दूसरी खिड़की से निकलती हो.
मनुष्य रास्ता भी ऐसा पसंद करता है जहां एक तरफ से प्रवेश हो और दूसरी तरफ से बाहर निकला जा सकता हो.
परन्तु…. यही मनुष्य रूपये पैसे के मामले में सर्वथा विपरीत रवैया अपनाता है. रूपया पैसा खुब आना चाहिये पर जाना तो बिलकुल नही चाहिये. यह लोभ की भूख नही तो क्या है.
स्नान से देह की शुद्धि,
दान से धन की शुद्धि.
ध्यान से मन की शुद्धि,
चिंतन से विचारों की शुद्धि होती है.
आओ आज से ही हम सद् चिंतन कर के निज मन को सहज सरल बनाये. पहला कदम सत्य की ओर बढ़ाने का प्रयास करे.