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अनासक्ति का विस्तार

पुणिया श्रावक का उदाहरण शास्त्रों में उपलब्ध है। उसका जीवन सदाचार और संतोष से परिपूर्ण था।

न महल कि कामना है, न सुदंर वस्त्रों के धारण करने कि कल्पना है। परमात्मा महावीर की वाणी को जिसने पढ़ा ही नही था, सुना ही नही था बल्कि क्रिया में, जीवन में, अचार में, विचार में भी उतारा था।
उसकी प्रशंसा परमात्मा महावीर ने भी की थी।

पुणिया श्रावक गरीब था, पर गरीब न था; क्योकि उसके ह्रदय में कोई कामना न थी। पुणिया श्रावक अमीर न था, पर बहुत बड़ा अमीर था क्योकि उसके पास संतोष धन था।

जिसके आने के बाद कुछ प्राप्त करने कि इच्छा ही शेष नहीं रह जाती। संतोष अपने आप में बहुत बड़ी पूजीं है जीवन की । संत जन कहते है।

“गोधन गजधन वाजिधन और रतन धन खान,
जब आवे संतोष धन, सब धन धूरि समान ॥

ये परिभाषाएँ थोड़ी दार्शनिक हैं, गहरी हैं। शास्त्रीय हैं ! पर इस में जीवन की दृष्टि उजगार हुई है। इसमें जीवन का निचोड़ है ।

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