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पुत्रवधूएँ या पुत्रियां?

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“हम पू. मातापिता की सेवा खूब करते थे। लेकिन मातापिताजी मुंबई की अशांति, हवामान की प्रतिकूलता आदि के वजह से सदा के लिए वतन गए हैं। हम दोनों भाई लगभग २० सालों से मुंबई में रहते हैं। व्यवसाय, परिवार, बाल-बच्चों की पढ़ाई आदि वजह से मुंबई छोड़ना मुश्किल है। उसी प्रकार परोपकारी माँबाप की सेवा से कैसे वंचित रह सकते हैं? मैं तो बड़ी उलझन में फंसा हूं ? बोलो! क्या करें ?पति ने पत्नी को दिलका दर्द बताया। सुंसस्कारी पत्नी ने कहा,”चिंता मत करो। भाभी और मैं सोचकर रास्ता निकालेंगे।” देवरानी- जेठानी ने सोचकर बारी-बारी से ६-६महीने देश में सेवा करने का निर्णय किया। मुंबई में रहने वाली सदस्या दोनों परिवार को संभाले यह निर्णय भी किया। मुंबई में दोनों भाइयों के पूरे परिवार को छ: मास खिलाना आदि सभी जिम्मेदारी उठाने वाली और सास- ससुर की सेवा के लिए ६ मास पतिवियोग का दु:ख सहर्ष स्वीकारने वाली ये दो शेरनियां ने कितना कर्म नाश किया होगा यह तो ज्ञानी ही जाने। है सुख चाहनेवालों!

मातापिता को सुख दोगे तो सुख जरूर तुम्हारे कदम चूमेगा। शास्त्रकार कहते हैं कि मातापिता की सेवा करने वालों को प्राय: सुगुरु और परम गुरु की प्राप्ति तथा अन्य अनेक शुभ फल मिलते हैं।

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सेव श्रावकत्त्व (श्रावक धर्म की रक्षा)
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लाखों धन्यवाद साधु जैसे श्रावक को
December 11, 2018

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