पालीताणा के सेठ परिवार के इस धर्मरागी भाग्यशाली को स्वप्न में भी शाश्वततीर्थाधिपति आदिनाथजी और भमती का कभी-कभी दर्शन होता है। उन्होंने ह्रदय में दादा को स्थापित कर अंतर को कैसा उज्जवल बना दिया कि दिन में वे आदिनाथमय बनते हैं और उनके पावन दिल में रात को भी दादा प्रकट होते हैं। बहुतों को स्वप्न भूत और भय के आते हैं, क्योंकि पूरा दिन वे स्वयं माया-मोह में ही लगे रहते हैं। इन्हें आदिनाथ का सपना आता है। इसका कारण जानना चाहते हैं? बार-बार यह पढ़िए। इस श्राध्दरत्न ने श्री शत्रुंजय गिरिराज की ११ यात्रा ४६ बार की है! (तुमने हर साल कम से कम एक तो की है न?)
उनकी पैदल तीर्थयात्राएं:- महुवा से अंजार (वाया ऊना, दीव,देलवाड़ा), पालीताणा से तलाजा, पलीताणा से गिरनार, मुंबई से शत्रुंजय। उनका पवित्र नाम है रतीलाल जीवराज सेठ, वय ६१।पलीताणा नगर के सेठ परिवार । उन्होंने अपने स्नेहीजनों को भी प्रेरणा देकर११ यात्रा करवाई है। नवपदजी की ओली लगातार २० साल से कर रहे हैं २ बार किए हैं। भगवान के जुलूस के दौरान विशिष्ट कपड़ों में सज्ज हो लाल हरी ध्वजा के साथ संकेत करने अवश्य हाजिर रहते हैं। गांव में लोग उन्हें राजा के नाम से पहचानते हैं।