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आओ पहचानो गुरुभक्त को

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श्री हस्तगिरिजी तीर्थ बनवाने वाले सुश्रावक कांतिभाई मणिभाई से अनेक जैन परिचित है। श्री हस्तगिरीजी तीर्थ के उद्धार में उन्होंने तन मन धन जीवन न्योछावर कर दिया है। यह श्रावक साहस से कैसी अनोखी सिद्धि पा सकते हैं इसका साक्षात दर्शन आज हस्तगिरि तीर्थ में होता है। एक छोटासा मंदिर भी किसी अकेले को बांधने में कितनी मुसीबतें उठानी पड़ती है इसका हमें भी ख्याल है। तब कांतिभाई ने ऊंचे पर्वत पर शून्य में से एक भव्य तीर्थ के निर्माण में कितनी सारी कुरबानी दी होगी?

यह साध्दत्न तीर्थ को श्रेष्ठ तथा पवित्र बनाने के लिए अविधि – आशातना न हो इसलिए खुद वहां रख कर निगरानी रखते थे! ओली के आयँबिल जालिया गांव में झोपड़ी में खुद रसोई बना कर इस करोड़पति श्रावक ने किए थे!!

संयममूर्ति, परम पूज्य आचार्य भगवंत श्रीमद विजयमंगतुंगसूरीश्वरजी म.सा. की हस्तगिरीजी के उध्दार की भावना जान कर इस सुश्रावक ने वह अति भगीरथ सत्कार्य भव्य रीति से साकार करने का बीड़ा उठा लिया। परम पूज्य आचार्य भगवंत श्रीमद विजय रामचंद्रसुरीश्वरजी म. सा.आदि अनेक पूज्यो की कृपा से और अपनी सर्वशक्ति से यह श्रेष्ठ कार्य बहुत सुंदर तरीके से पूर्ण किया। और ऊंचे पर्वत के शिखर पर 12 जिनालय का भव्य देवालय देवालय का निर्माण किया!!

ऐसे अतिपवित्रह्रदयी, शासनरागी ने श्रेष्ठ निर्मल भाव से शास्त्रीय विधि पूर्वक निर्माण किए इस हस्तगिरि तीर्थ की हमें अत्यंत भक्तिभाव से विधि पूर्वक शुभ आश्रय से बार-बार यात्रा करनी चाहिए। जिससे हमारे अनादि अनंत अशुभ भावों का समूल नाश होकर हमें सम्यकत्व सर्वविर्ति और शिवरमणी अवश्य मिलेंगे ।

जीवमात्र के प्रति उनका मैत्री भाव भी खूब ही अनुमोदनीय है। उपकार बुद्धि से नौकरी में रखे आदमी ने गरीब लाख रुपये की चोरी की । कांति भाई ने डाटने के बदले सवत्सरी उसको लिखी। कोई भी दंड नहीं किया । उनका सिर फोड़ने आने वाले को पालीताणा चातुर्मास करने के लिए प्रेम से बुलाकर , कुछ व्यवस्था सोप कर अपने मैत्री भाव को खूब दृढ़ किया। उन्हें अपनी दो सुपुत्रियों की शादी में निमंत्रित कर उचित सत्कार किया। जालियां के सभी आदमियों का तीर्थ का विरोध चतुराई से मिटा दिया । इस कांतिभाई के सादगी ,नम्रता , निखालसता आदि अनेक गुण अनुमोदनीय थे । मुंह पर अभिमान और श्रीमंताई की रेखा भी दिखाई नहीं देती थी। मूल पाटन के इस जोहरी शेष्टि ने पालीताणा में मुक्ती निलय धर्मशाला और अमारी विहार बंधाई। चातुर्मास ,नव्वाणु यात्रा, तीर्थयात्रा उन्होंने अनेक बार उदारता पूर्वक करवाए। आज के विलास-प्रधान युग में गिने-चुने श्रावकों में से एक सुश्रावक को आदर पूर्वक प्रणाम करें। उनके श्रेष्ठ धर्मकार्यो की भाव पूर्वक अनुमोदना कर आप भी तीर्थयात्रा ,तीर्थ- निर्माण आदि आराधना यथाशक्ति करें यही शुभाशिष।

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