महाभारत का युद्ध चल रहा था!
एक दिन दुर्योधन के व्यंग्य से आहत होकर भीष्म पितामह घोषणाकर देते हैं कि
मैं कल पांडवों का वध कर दूँगा।
उनकी घोषणा का पता चलते ही पांडवों के शिविर में बेचैनी बढ़ गई,
भीष्म की क्षमताओं के बारे में सभी को पता था इसलिए सभी किसी
अनिष्ट की आशंका से परेशान हो गए।
तब-
श्री कृष्ण ने द्रौपदी से कहा अभी मेरे साथ चलो,
श्री कृष्ण द्रौपदी को लेकर सीधे भीष्म पितामह के शिविर में पहुँच गए।
शिविर के बाहर खड़े होकर उन्होंने द्रोपदी से कहा कि- अन्दर जाकर पितामह को प्रणाम करो!
द्रौपदी ने अन्दर जाकर पितामह भीष्म को प्रणाम किया तो उन्होंने अखंड सौभाग्यवती भव:
का आशीर्वाद दे दिया। फिर उन्होंने द्रोपदी से पूछा कि ?
वत्स तुम इतनी रात में अकेली यहाँ कैसे आई हो, क्या तुमको श्री कृष्ण यहाँ लेकर आये है ?
तब द्रोपदी ने कहा कि
हां और वे कक्ष के बाहर खड़े हैं। तब भीष्म भी कक्ष के बाहर आ गए
और दोनों ने एक दुसरे से प्रणाम किया!
भीष्म ने कहा-
मेरे एक वचन को मेरे ही दूसरे बचन से काट देने का काम श्री कृष्ण ही कर सकते है।
शिविर से वापस लौटते समय श्री कृष्ण ने द्रौपदी से कहा कि तुम्हारे एक बार जाकर पितामह को प्रणाम करने से तुम्हारे पतियों को जीवनदान मिल गया है।
अगर तुम प्रतिदिन भीष्म, ध्रतराष्ट्र, द्रोणाचार्य,
आदि को प्रणाम करती होती और दुर्योधन, दुःशासन, आदि की पत्नियां भी
पांडवों को प्रणाम करती होंती तो शायद इस युद्ध की नौबत ही न आती।
अतार्थ-
वर्तमान में हमारे घरों में जो इतनी समस्याए हैं उनका भी मूल कारण यही है कि जाने अनजाने अक्सर घर के बड़ों की उपेक्षा हो जाती है।
यदि घर के बच्चे और बहुएँ प्रतिदिन घर के सभी बड़ों को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद लें तो, शायद किसी भी घर में कभी कोई क्लेश न हो।
बड़ों के दिए आशीर्वाद कवच की तरह काम करते हैं उनको कोई
“अस्त्र-शस्त्र” नहीं भेद सकता हैं।