किसी समय एक जंगल में गधे ही गधे रहते थे।
पूरी आजादी से रहते, भरपेट खाते-पीते और मौज करते थे। एक लोमड़ी को मजाक सूझा।
उसने मुँह लटकाकर गधों से कहा- मैं अपने कानों से सुनकर और आँखों देखकर आई हूँ। मछलियों ने एक सेना बना ली है और वे अब तुम्हारे ऊपर चढ़ाई करने ही वाली हैं।
उनके सामने तुम्हारा ठहर सकना कैसे संभव होगा गधे असमंज में पड़ गए। उन्होंने सोचा व्यर्थ जान गँवाने से क्या लाभ। चलो कहीं अन्यत्र चलो।
जंगल छोड़कर वे गाँव की ओर चल पड़े। इस प्रकार घबराए हुए गधों को देखकर गाँव के धोबी ने उनका खूब सत्कार किया। अपने छप्पर में आश्रय दिया और गले में रस्सी डालकर खूँटे में बाँधते हुए कहा-डरने की जरा भी जरूरत नहीं मछलियों से मैं भुगत लूँगा तुम मेरे बाड़े में निर्भयतापूर्वक रहो। केवल मेरा थोड़ा सा बोझ ढोना पड़ा करेगा गधों की घबराहट तो दूर हुई पर
उसकी कीमत महँगी चुकानी पड़ी।