दिन की कहानी
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अनित्य का विचार
अनित्य वस्तुओं के लिए शोक करना, अरे! विचार भी करना वह बुद्धिहीनता है। जो अनित्य है उसका नाश नहीं होगा तो किसका नाश होगा? अनित्य वस्तु आए या जाए, उस पर विवेकी आत्मा थोड़ा भी ध्यान नहीं देती क्योकि वह अनित्य है। अनित्य वस्तु पर राग रखना वह स्वयं ही दुःखदायक है। इस बात का सभी को अनुभव होता है।…
सच्चे स्वामी
अपना घर, शरीर, स्वजन और धन्य ये सभी तत्व से अपने नहीं है। परंतु पूण्य के हैं। उन सब का तात्विक मालिक पुण्य कर्म है और पुण्य कर्म के मालिक से तीर्थंकर परमात्मा है। पूर्ण उपार्जन करने का कोई भी प्रकार तीर्थंकर नाम कर्म रूप परम प्रकृति के विपकोदेय से स्थापित धर्मतीर्थ के प्रभाव से ही प्राप्त होता है, इसलिए…
श्री अरिहंत के सेवक
श्री अरिहंत के सेवक एक कुटुंबी है। निगोद, ऐकेंद्रीय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रीय, चउरिन्द्रीय, पंचेन्द्रीय, नारकी, तिर्यंच, मनुष्य, देव सभी एक ही कुटुंब के हैं। सभी एक ही घड़े के चावल, एक ही वस्त्र के धागे, एक ही शरीर के अवयव, एक ही यंत्र के चक्र, एक ही पुष्प की पंखुड़ी, एक ही संगीत के सुर, एक ही प्रकाश की किरण, एक…
परमात्मा का ध्यान
नवपदात्मक परमात्मा का स्मरण-मनन-ध्यान यही इस मनुष्य-जन्म का प्रथम एवं उत्कृष्ट कर्तव्य है। भक्ति योग का जीवन के साथ क्या संबंध है। इस कारण आत्मोत्थान के लिए यह सहज एवं सरल साधन गिना जाता है। भक्ति का मूल बुद्धि से परे इसी श्रद्धा में रहा हुआ है। फिर भी भक्ति में विवेक का भी स्थान है। जितनी अधिक श्रद्धा होगी…
परमात्मा भक्ति
परमात्मा का ध्यान उनके आज्ञापालन द्वारा, उनके गुण-चिंतन द्वारा, उनके नाम रूप द्वारा हो सकता है। आत्मध्यान हेतु नवपदात्मक परमात्मा का आलंबन अनिवार्य है। वह आलंबन उनके नाम, रूप और गुणचिंतन में एकाग्रता द्वारा होता है। नाम, रूप और गुणचिंतन के लिए जो निर्मलता चाहिए, वह अहिंसा, संयम और तप के अनुष्ठान द्वारा प्राप्य है। अहिंसा द्वारा पापनिवृत्ति, संयम द्वारा…