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दशवैकालिक के रचयिता शय्यभव सूरिजी – भाग 7
दया के महसागर शय्यंभव सूरी जी ने मणक मुनि को वह ग्रन्थ अच्छी तरह से पढ़ाया । इसके परिणाम स्वरूप वे बालमुनि अत्यंत ही अप्रमत्त भाव से संयम धर्म की आराधना साधना करने लगे । मणक मुनि आत्म साधना में एकदम रम गए। अत्यंत ही आत्म जागृति पूर्वक मणक मुनि ने छः मास व्यतीत किये और एक दिन अत्यंत ही…
दशवैकालिक के रचयिता शय्यभव सूरिजी – भाग 6
बालक के दिल में पिता के दर्शन की तीव्र उत्कंठा पैदा हुई और एक दिन माता को ठगकर वह पिता की शोध में निकल पड़ा। उस समय शय्यंभव सूरि जी. म. चंपा नगरी में विचरण कर रहे थे। भाग्य योग से वह बालक भी चंपा नगरी के बहार आ पंहुचा। उस समय शय्यंभव सूरि जी म. स्थंडिल भूमि से वापस…
दशवैकालिक के रचयिता शय्यभव सूरिजी – भाग 5
भागवती दीक्षा स्वीकार करने के बाद शय्यंभव मुनि ज्ञान ध्यान की साधना में लीन बन गए । अनुकूल प्रतिकूल परिषह उपसर्गो को वे अत्यंत ही समतापूर्वक सहन करने लगे । उपवास , छट्ठ , अट्ठम आदि विविध तपो के द्वारा उनका बाह्य-अभ्यन्तर तेज खूब खूब बढ़ने लगा।. . . इसी प्रकार गुरु शुश्रुषा में लीन बने शय्यंभव मुनि ने अल्पकाल…
दशवैकालिक के रचयिता शय्यभव सूरिजी – भाग 4
शय्यंभव को सन्मार्ग की प्राप्ति हो चुकी थी, अतः उसने नम्रता पूर्वक कहा , पूज्यवर! आपने सत्य तत्त्व को बतलाकर मुझे सत्य मार्ग प्रदान किया है; अतः आप मेरे उपाध्याय हो।’ उसके बाद शय्यंभव ने उस उपाध्याय को सुवर्ण व ताम्र के विविध उपकरण भेंट किए । तत्पश्चात उन मुनियो को शोध में वह शय्यंभव निकल पड़ा । कुछ दूरी…
दशवैकालिक के रचयिता शय्यभव सूरिजी – भाग 3
यह पद्य उन्होंने अनेक बार दुहराया। दीक्षित शय्यंभव यज्ञ शाला के द्वार के पास बैठा हुआ था ।जैन मुनियो के मुख से इस पद्य को सुनकर शय्यंभव ब्राह्मण सोचने लगा , ‘अहो! उपशम प्रधान ये साधु कभी भी असत्य भाषण नही करते हे ; अतः लगता हे की अभी तक हमने सत्य तत्व को प्राप्त नही किया है।’ शय्यंभव ब्राह्मण…