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आर्यरक्षित सूरिजी – भाग 25
वज्रस्वामीजी भी आर्यरक्षित को सुयोग्य जानकर पूर्वो का अभ्यास कराने लगे। आर्यरक्षित स्वाध्याय सागर में आकंठ डूब गए। ज्यों-ज्यों अभ्यास में आगे बढ़ने लगे, त्यों-त्यों उनका उत्साह बढ़ने लगा। जिनशासन के अगम्य रहस्य जानकर वे अपने आप को बड़भागी समझने लगे। ‘धन्य जिनशासन! धन्य गुरुदेव!’ की मधुर ध्वनि उनके रोम रोम में गूंजने लगी। उनकी ज्ञान की सच्ची साधना व…
आर्यरक्षित सूरिजी – भाग 24
अब आर्यरक्षित मुनिवर ने उज्जैन नगरी में प्रवेश करने के लिए विहार प्रारंभ किया। उज्जयिनी नगर में युगप्रधान आचार्य भगवंत ने एक स्वप्न देखा, मेरे पास दूध से भरा हुआ पात्र था, कोई अतिथि आया……. उसके सामने वह पात्र धरा….. उसने उस पात्र में थोड़ा सा दूध बाकी रखा….. और शेष सब दूध पी गया। वज्रस्वामीजी ने यह सपना अपने…
आर्यरक्षित सूरिजी – भाग 23
आचार्य भगवंत संथारे पर लेट गए……. उनका देह लगभग क्षीण हो चुका था…… आर्यरक्षित मुनिवर पास में ही बैठे थे। आचार्य भगवंत ने समस्त जीवो से क्षमापना की…. नमस्कार महामंत्र का जोर से उच्चारण किया……. णमो अरिहंताणं….. णमो सिद्धाणं….. णमो आयरियाणं….. णमो उवज्झायाणं….. णमो लोएसव्वसाहूणं ऐसो पंच नमुक्कारो , सव्व पवप्पणासणो……मंगलाणं च सव्वेसिं पढमं हवइ मंगलं। चत्तारि सरणम्……. पवज्जामी। अरिहंते…
आर्यरक्षित सूरिजी – भाग 22
योग्य निर्यामक का योग हो और मृत्यु के समय समाधि की तीव्र इच्छा हो……. तो मृत्यु को महोत्सव स्वरूप बनाया जा सकता है। भद्रगुप्तसूरी म. की बात को सुनकर आर्यरक्षित ने कहा-भगवंत! आपकी आज्ञा शिरोधार्य है…… आपकी आज्ञा हो….. तो मैं अभी यहीं रहूंगा। बस! भद्रगुप्तसूरी म.की आज्ञा से आर्यरक्षित मुनवर वहीं रह गए । वह बार-बार आचार्य भगवंत को…
आर्यरक्षित सूरिजी – भाग 21
अभी तुम्हारी विहार-यात्रा किस ओर चल रही है? भद्रगुप्तसूरीजी ने पूछा। भगवंत! अभी गुरुदेवश्री की आज्ञा से उज्जैन नगरी की ओर विहार हो रहा है। पूज्य गुरुदेव ने मुझे पूर्वो के अभ्यास के लिए युगप्रधानवज्रस्वामीजी भगवंत के पास जाने की आज्ञा फरमाइ है। भगवंत! आपश्री के देह में निरामयता है न? आप श्री का देह अधि कृश हो गया है।…