आचार्य भगवंत की तेजस्वी प्रतिभा के दर्शन हेतु दूर-दूर से प्रजा उमड़ रही थी। नगर में स्थान स्थान पर तोरण बांधे हुए थे। स्वागत यात्रा आगे बढ़ रही थी। आचार्य भगवंत कि इस भव्य स्वागत यात्रा आगे बढ़ रही थी। आचार्य भगवंत की इस भव्य यात्रा को देखकर एक पांचाल कवि का ह्रदय ईर्ष्या की आग से जल उठा।
थोड़ी ही देर बाद वह स्वागत यात्रा राजसभा में पहुंची। वह राज्यसभा धर्मसभा में परिवर्तित हो गई। आचार्य भगवंत ने उच्च आसन ग्रहण किया तथा सभी प्रजाजनो ने आचार्य भगवंत को वंदना की। तत्पश्चात आचार्य भगवंत ने मंगलाचरण प्रारंभ किया। आचार्य भगवंत के मुख से शब्द क्या निकल रहे थे, मानो अमृत का स्त्रोत प्रवाहीत हो रहा था।
मंगलाचरण के बाद आचार्य भगवंत कि वैराग्यमय देशना का श्रवण कर प्रजाजन भाव विभोर हो उठे।
देशना समाप्त हुई………आचार्य भगवंत ने ‘सर्व मंगल’ का पाठ किया।
आचार्य भगवंत के देशना से अत्यंत प्रभावित महाराजा ने आचार्य भगवंत का अभिवादन किया और प्रतिदिन धर्म देशना प्रदान करने के लिए अत्यंत आग्रह पूर्ण विनती कि। आचार्य भगवंत ने महाराजा की विनती स्वीकार की।
अब प्रतिदिन आचार्य भगवंत राजसभा में पधारने लगे और अपनी तीक्ष्ण बुद्धि से जैनदर्शन के गूढ़तम तत्वों को सरल भाषा में प्रगट करने लगे। आचार्य भगवंत की देशना का श्रवण कर अनेक व्यक्तियों के ह्रदय परिवर्तित हो गए और उन्होंने अपने जीवन को सात्विक बना लिया।
अधिकांश श्रोता कथाप्रिय होते है। अतः कथा के माध्यम से उन्हें बहुत कुछ समझाया जा सकता है।
आचार्य भगवंत ने भी अपनी काव्य प्रतिभा से ‘तरंग-लोला’ नामक काव्य ग्रंथ की रचना की ओर ज्यो-ज्यो वे उसके श्लोक पढ़ते थे, त्यों-त्यों प्रजाजन भावविभोर हो जाते थे।
आचार्य भगवंत की काव्य प्रतिभा से सभी प्रसन्न थे, किंतु उस पांचाल कवि का दिल जल रहा था। सूर्य तो अपनी तेजस्वी प्रभा से संपूर्ण जगत को प्रकाश से भर देता है, किंतु उस समय भी उल्लू आंखें बंद किए रहता है, चारों और सूर्य का प्रकाश होने पर भी उसे कुछ दिखाई नहीं देता है, इसमें सूर्य का क्या दोष है?
बस, ईर्ष्या की आग में जल रहे उस कवि ने आचार्य भगवंत की भव्य प्रतिभा को कलंकित करने के लिए एक भयंकर योजना बना ली।
आचार्य भगवंत के मुख से उस काव्य कथा का श्रवण कर उस पांचाल कवि ने वह कथा पुराने कागज पर लिख डाली और आग के धुएं में उन कागजों को पुराना बनाकर, कृतिकार के रूप में अपने पूर्वजों का नाम जोड़ दिया। इस प्रकार आचार्य भगवंत की काव्य कृति में परिवर्तन कर एक दिन वह एकांत में महाराजा के पास जा पहुंचा।
महाराजा ने उसकी क्षेम/कुशलता पूछी और आगमन का विशेष कारण पूछा।
पांचाल कवि ने कहा, “राजन! एक महत्व के बात कहने आया हूं, किंतु मुझे लगता है कि आप उस ओर ध्यान नहीं दे सकोगे।”
राजा ने कहां, कविराज! ऐसी क्या बात है, जो हो वह सत्य कहो, में अवश्य ही तुम्हारी बात पर ध्यान दूंगा।
कवि ने कहा, राजन! बात ऐसी है कि आप आचार्य पादलिप्त सूरी म. की ‘तरंग-लोला’ काव्य कृति से अत्यंत आकृष्ट बन चुके हो, परंतु आपको पता है, उस कृति के कर्ता कौन है।
राजा ने कहा, इसमें पूछने की क्या बात है, इसके कर्ता तो पादलिप्त सूरी म. ही है।