संतान-प्राप्ति
समय बीतते क्या देर लगती है। नदी के जलप्रवाह की भांति वह प्रतिक्षण अविरत गति से बहता ही रहता है। प्रतिमा गर्भवती हुई। गर्भ की वह पूर्ण सावधानी रखने लगी। गर्भ में शुभ जीवात्मा का आगमन हो तो गर्भवती स्त्री को शुभ दोहद होते हैं और गर्भ में पापी जीवात्मा के आगमन होने पर गर्भवती स्त्री को अनेकविध अशुभ दोहद होते हैं।
गर्भ के प्रभाव से प्रतिमा देवी को दान आदि के शुभ दोहद पैदा हुए। इस प्रकार गर्भ का वहन करते हुए समय बीतने लगा और एक दिन प्रतिमा देवी ने पुत्ररत्न को जन्म दिया।
दासी ने पुत्रजन्म के समाचार सेठ जी को दिए। पुत्रजन्म के समाचार सुनकर सेठ जी के हर्ष का पार न रहा। उन्होंने पुत्र का जन्म महोत्सव मनाया।
अत्यंत तेजस्वी रूपवान और प्रसन्नमुख पुत्ररत्न को प्राप्त कर प्रतिमा देवी और फुल्ल का स्वप्न साकार हो गया। उन्होंने देवी के वरदान के अनुरूप पुत्र का नाम नागेंद्र रखा।
पुत्र नागेंद्र मां के लाड़-प्यार में बड़ा होने लगा।
अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार बिल्कुल अल्पवय में ही मां ने अपनी संतान गुरुदेव के चरणों में अर्पित कर दी और फिर गुरुदेव की आज्ञा अनुसार स्वयं ही पुत्र का लालन पालन करने लगी।
समय बीतने पर नागेंद्र बढ़ा हुआ। गुरुदेव के सत्संग और संपर्क से बालक नागेंद्र की प्रतिभा प्रकट होने लगी। गुरुदेव ने बालक की योग्यता देखकर मुनि दीक्षा की सम्मति प्रदान की, तदनुसार उनके गुरुभ्राता संग्रामसिंह सूरीजी महाराज के शुभ सानिध्य में बाल नागेंद्र की दीक्षा अत्यंत धूमधाम के साथ संपन्न हुई।
नूतन मुनि के ज्ञान अभ्यास आदि का कार्यभार मंडन मुनि को सौंपा। मंडन मुनि गीतार्थ और शास्त्र के पारगमी थे। मंडन मुनि के शुभ सानिध्य में नागेंद्र मुनि अल्प समय में ही शास्त्र के पारगमी बन गए।
एक बार आचार्य भगवंत ने नागेंद्र मुनि को कांजी का जल लाने के लिए भेजा।
गुरुदेव की आज्ञा स्वीकार कर नागेंद्र मुनि जल लाने के लिए गृहस्थ के घर गए। कांजी का जल बहोरकर गुरुदेव के पास आए। जल किसने बहोराया? इसके जवाब में वे बोले:-
अंबं तम्बच्छीए अपुफ्फीयं पुफ्फदन्तपन्तिए।
नवसालिकंजीयं नव वहूई कुडएण मे दिन्नम् ।।
अर्थ-लाल वस्त्र वाली अऋतुवन्ति, पुष्प सदृश्य दंत पंक्ति वाली नववधू ने बड़े ही प्रमोद से मुझे नए चावलों की कांजी प्रदान की है।