कुछ शिष्य ने संभलकर वैद्य को बुलाया।
थोड़ी ही देर में वैद्य आकर उपस्थित हो गए……… देखते ही देखते आसपास के श्रावक भी आ गए। वैद्य आचार्यश्री की नाड़ी देखी/परखी और दुखी ह्रदय से बोला, “आचार्यश्री का स्वर्गवास हो चुका है।”
अरे! क्रूर काल ने हमारा सर्वस्व छीन लिया।
आचार्यश्री की मृत्यु के समाचार चारों और हवा की भांति फैलने लगे पहले तो जिसने भी सुना, उसे विश्वास नहीं आया…… परन्तु जब यही समाचार अनेक लोगों के मुख से जानने को मिले….. तब सभी को एकदम आघात पहुँचा।
देखते ही देखते आचार्यश्री के अंतिम दर्शन के लिए चारों ओर से भीड़ उमड़ पड़ी।
सभी लोग आ-आकर आचार्यश्री के अंतिम पूजन करने लगे और अश्रुपूर्ण नेत्रो से श्रद्धांजलि अर्पित करने लगे।
सभी के दिल में दर्द था और आंखों में आंसू थे।
बस! थोड़ी ही देर में यह समाचार आसपास के जैन संघो में पहुँचाये गए। जिसने भी समाचार सुना, आघात से करुण रुदन करने लगा।
लोग दूर-दूर से आने लगे। इधर आचार्यश्री की श्मशान-यात्रा के लिए दुखी ह्रदय से तैयारियां प्रारंभ हुई।
श्मशान यात्रा की तैयारी चल रही थी- सभी ने दुखी हृदय से रात्रि व्यतीत की। हजारों लोगों ने आकर भगवंत श्री का पूजन किया।
प्रातः काल ठीक आठ बजे आचार्यश्री के देह को जरियन की पालकी में बिठाया गया……. लोग अंतिम दर्शन करने लगे…… और थोड़ी देर बाद आचार्यश्री की श्मशान यात्रा प्रारंभ हो गई।
नगर के महाराजा को भी आचार्य श्री के स्वर्ग गमन के समाचार मिले। समाचार सुनते ही उनका दिल वेदना से भर आया।
राजा सोचने लगा “मुझे लगता है। आचार्यश्री पर जो कलंक आया…. उस कलंक की वेदना को वह सहन नहीं कर पाए…… और अचानक उनका ह्रदय रुक गया हो।
राजा ने भी अपना शोक संदेश भेजा।
इधर आचार्यदेवश्री की श्मशान यात्रा प्रारंभ हो चुकी थी। प्रमुख राज्यमार्ग को पार करते हुए श्मशान यात्रा धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी।