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ब्रम्हचर्य सम्राट स्थूलभद्र स्वामी – भाग 9

महाभिनिष्क्रमण

भवितव्यता के आगे पुरुषार्थ भी पंगु है। जो हानि है, उसे कोन टाल सकता है?
शकटाल की अकाल मृत्यु से राजा को अत्यंत ही आघात लगा। उसे अपनी भूल का तीव्र पश्चात्ताप होने लगा।
खाली पड़े मंत्री पद की पूर्ति के लिए राजा ने श्रीयक को बुलाकर कहा , श्रीयक! पिता के खाली पड़े स्थान की पूर्ति के लिए तुम्हे मंत्री मुद्रा का स्वीकार करना चाहिये। तुम इस पद के लिए हर तरह से काबिल हो।’
राजा की इस बात को सुनकर श्रीयक ने कहा, राजन! इस मंत्री पद के लिए मैं नही , किन्तु मेरा ज्येष्ठ बन्धु अधिक योग्य है।’
‘क्या तुम्हारा ज्येष्ठ बन्धु है?’
‘हा! राजन्! मेरा ज्येष्ठ बन्धु स्थूलभद्र है। वह हर तरह से सुयोग्य है।’
‘वह अभी कहा है?’
‘वह अभी कोशा वेश्या के वहा रहा हुआ है। वहां रहे हुए उसे 12 साल बीत गए है।’
श्रीयक की इस बात को सुनकर राजा ने तत्काल स्थूलभद्र को बुलाने के लिए सुयोग्य सेवक को भेज दिया।
श्रीयक की यह कैसी महानता!
आज व्यक्ति पद की प्राप्ति के लिए अनेक प्रकार से माया कपट का आश्रय लेता है, परन्तु श्रीयक राजा की और से मिल रहे मंत्री पद को भी ठुकराने के लिए तैयार हो गया । मंत्री मुद्रा स्वीकार करने के बजाय अपने ज्येष्ठ बन्धु को मंत्री पद देने का आग्रह रखा।
राजा की आज्ञा होते ही राजसेवक कोशा वेश्या के भवन में पहुँच गया।
राज सेवक ने गौरवर्णीय , हष्ट पुष्ट शरीर वाले और अत्यंत ही कांतिमान ऐसे स्थूलभद्र को कोशा वेश्या के साथ प्रसन्नता पूर्वक वार्ता विनोद करते हुए देखा। राजसेवक के अचानक आगमन से उनके वार्तालाप के रंग में भंग पड़ा।
स्थूलभद्र ने पूछा, ‘भाई! तुम कोन हो और क्यों आये हो?’
राजसेवक ने कहा, महाराज ने आपको याद किया है।
महाराज ने और मुझे? स्थूलभद्र ने आश्चर्य से पूछा।

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