बालको के वचन की सत्य प्रतीत करने के लिए राजा ने किसी गुप्तचर को मंत्रीश्वर के घर भेजा। गुप्तचर ने आकर राजा को इतने समाचार दिए की मंत्रीश्वर के घर पर शस्त्रों का निर्माण चालू है।
बस, शस्त्र निर्माण कि बात की गहराई में उतरे बिना राजा ने मनोमन निश्चय के लिया, ‘हाँ! मंत्रीश्वर मुझे खत्म करने के लिए ही शस्त्रों का निर्माण कर रहा है।’
राजा ने पक्का निर्णय कर लिया की मंत्रीश्वर मेरा दुश्मन है।
दूसरे दिन मंत्रीश्वर ने जैसे ही राजसभा में प्रवेश किया , मंत्रीश्वर के आगमन को जानकर राजा ने तुरंत ही अपना मुंह मोड़ लिया।
राजा के इस बर्ताव को समझते मंत्रीश्वर को कुछ भी देर नही लगीं।
मंत्रीश्वर अपने घर लौट आया।
उसने सोचा की , ‘अवश्य ही मेरे किसी दुश्मन ने राजा के कान फूंक लिए है। राजा भी कान के कच्चे है;, अतः अब निकट भविष्य में ही मेरे परिवार पर भयंकर आपत्ति आ सकती है। आवेश में अंध बनने पर राजा शायद मेरे सम्पूर्ण कुल का भी क्षय करा सकता है; अतः अब किसी भी उपाय से मुझे अपने कुल का विनाश अवश्य रोकना चाहिये।’
इस प्रकार विचार कर मंत्रीश्वर अपने कुल का क्षय रोकने का उपाय सोचने लगा ।
काफी लम्बे समय तक सोचने पर आखिर मंत्रीश्वर को एक उपाय मिल ही गया।
मंत्रीश्वर ने अपने पुत्र श्रीयक को बुलाकर कहा, ‘बेटा! आज मेरे किसी पापोदय से अपने कुल के क्षय का प्रसंग उपस्थित हुआ है………. अतः उसके लिए कुछ उपाय करना चाहिये।’
‘पिताजी! बात क्या है?’
‘ बेटा! बात इस प्रकार है। मुझे लगता है कि किसी द्वेषी व्यक्ति ने जाकर राजा के कान फूंक लिये है। आज जब में राजसभा में गया , तब राजा ने मुझे देखकर अपना मुंह फेर लिया .. मुझे संदेह है कि राजा अपने सम्पूर्ण परिवार का भी नाश करा सकता है; अतः किसी उपाय से इस कुलक्षय को बचाना जरुरी है।’
पिताजी! राजा को पूछ लीया जाय की हमने कोनसा अपराध किया है?’
‘ बेटा यह बात अब शक्य नही है। राजा लोग कान के कच्चे होते है। सत्य परीक्षण के लिए उनके पास धैर्य नही होता है। राजा मेरी बात सुनेगा, ऐसा अवसर अब नही रहा है।’