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ब्रम्हचर्य सम्राट स्थूलभद्र स्वामी – भाग 5

इर्ष्यालु व्यक्ति कभी किसी के गुण नही देख सकता है। उसे तो सर्वत्र दोष ही दिखाई देते है। जिस व्यक्ति के प्रति ईर्ष्या की भावना होती है; उस व्यक्ति में रहे गुणों को देखने के लिए ईर्ष्यालु व्यक्ति अंध ही होता है।

गंभीर भूल

धीरे धीरे समय बीतने लगा !
श्रीयक की शारीरिक मानसिक योग्यता , परिपक्वता को जानकर मंत्रीश्वर ने सुयोग्य कन्या के साथ उसका पाणिग्रहण करने का निश्चय किया।
मंत्रीश्वर ने सोचा ‘ श्रीयक के लग्न प्रसंग पर महाराजा मेरे घर पधारेंगे , अतः उन्हें योग्य भेंट देनी पड़ेगी।’
इस प्रकार विचार कर मंत्रीश्वर ने महाराजा को अतिप्रिय ऐसी शस्त्र सामग्री देने का निश्चय किया। बस, तत्काल मंत्रीश्वर ने अपने महल में नवीन शस्त्रो के निर्माण के लिये योग्य कारीगरों को बिठा दिया । बड़ी संख्या में वे कारीगर मंत्रीश्वर के महल में अनेक प्रकार की शस्त्र सामग्रियां तैयार करने लगे । नगर में गुप्त रूप से घूमते हुए वररुचि को इस बात का पता चल गया कि मंत्रीश्वर अपने महल में शस्त्र सामग्रियां तैयार करा रहा है। बस, इस बात का पता लगते ही मंत्रीश्वर को खत्म करने के लिए वररुचि ने षड्यंत्र रचना प्रारंभ कर दिया।
छोटे-छोटे नन्हें-मुन्हे बच्चो को खाने पीने की सामग्री प्रदान कर वररुचि सभी बच्चों को एक श्लोक सिखाने लगा ।
वररुचि के सिखाने के अनुसार वे बच्चे बोलने लगे।
‘न वेत्ति राजासौ शकटाल: किं करिष्यति?
व्यापाद्य नन्दं, तदराज्ये , श्रीयकं स्थापयिष्यति ।।’
राजा को इस बात का पता नही है कि शकटाल क्या करेगा , वह तो नन्द राजा को मरवाकर उसकी गद्दी पर श्रीयक को बिठा देगा।
स्थान स्थान पर वे बच्चे यह श्लोक बोलने लगे।
जनश्रुति के माध्यम से जब राजा को इस बात का पता चला, तब राजा ने सोचा , ‘ बालको का वचन मिथ्या नही हो सकता। ‘दिन में चमकने वाली बिजली निष्फल नही जाती है, रात्रि में हुई गर्जना निष्फल नही जाती है’- इसी प्रकार बालक का वचन और देव का दर्शन निष्फल नही जाता है।’

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