सिंह गुफा वासी मुनि की इस प्रार्थना को सुनकर गुरुदेव समझ गए की यह स्थूलभद्र के साथ ईर्ष्या रखकर यह बात कर रहा है। गुरुदेव ने अपने ज्ञान का उपयोग लगाकर निर्णय किया कि कोशा वेश्या के वहाँ अन्य किसी भी मुनि का चातुर्मास उनकी आत्मा के लिए हितकर नही है, इस बात को जानकर गुरुदेव ने उस मुनि को समझाते हुए कहा, वत्स! तुम इस प्रकार का अतिदुष्कर अभिग्रह धारण मत करो । मेरु की तरह स्थिर एक मात्र स्थूलभद्र ही इस प्रकार के अभिग्रह को धारण कर पूर्ण करने में समर्थ है।’
गुरुदेव के इन वचनों को सुनकर उस मुनि ने कहा , गुरुदेव! मेरे लिए यह अभिग्रह कोई दुष्कर नही है तो फिर दुष्कर दुष्कर कैसे हो सकता है।
गुरुदेव ने कहा, वत्स! इस प्रकार के अभिग्रह से तुम पूर्व के तप से भी भ्रष्ट हो जाओगे। अपनी शक्ति के उपरांत भार को वहन करने से लाभ के बदले नुकसान ही होता है।
गुरुदेव के द्वारा इस प्रकार समझाने पर भी अपने आपको शूरवीर मनाने वाले उस मुनि ने गुरु के वचन की अवज्ञा की और अभिमानी बनकर कोशा वेश्या के भवन की और निकल पड़े।
कोशा वेश्या के भवन में पहुचने पर उन्होंने चातुर्मास व्यतीत करने के लिए चित्रशाला प्रदान करने की मांग की ।
मुनि की प्रार्थना सुनकर वह कोशा वेश्या समझ गई की ये मुनि, स्थूलभद्र मुनि से ईर्ष्या रखते हुए यहाँ आए है। ये अपने आपको तपस्वी मान रहे है, परन्तु पतन की गर्त में डूबने की तैयारी करने वाले इनका, किसी भी उपाय से अवश्य रक्षण करना चाहिए। इस प्रकार विचार कर कोशा वेश्या ने उन्हें रहने के लिए चित्रशाला प्रदान कर दी। तत्पश्चात् षडरस भोजन बहोराया। उसके बाद मुनि के सत्त्व की परीक्षा करने के लिए रूप और लावण्य की साक्षात् प्रतिमा सामान वह कोशा अपने देह का अद्भुत श्रृंगार कर मुनिवर के सामने उपस्थित हुई।
काम के आसनों के विविध चित्र , षडरस युक्त भोजन और कोशा वेश्या के अद्भुत रूप को देखकर वे मुनि तत्काल क्षुब्ध हो गए। उनके अंतर्मन पर काम शत्रु ने जोरदार हमला किया और तत्क्षण वे परास्त हो गए।
काम के घर में रहकर काम से अलिप्त रहने वाले तो स्थूलभद्र जैसे विरले ही हो सकते है।