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ब्रम्हचर्य सम्राट स्थूलभद्र स्वामी – भाग 15

षडरस का आहार भी काम को उत्तेजित करने वाला है। उसके बाद वह कोशा वेश्या सुंदर वस्त्र एवं आभूषणों से अलंकृत होकर स्थूलभद्र मुनिवर के समीप आई। और अपने हाव भाव से स्थूलभद्र मुनिवर को अपने वश में करने लगी । परन्तु यह क्या? फूल की भांति कोमल ह्रदयवाले ये स्थूलभद्र मुनि आज उसे वज्र की भांति कठोर प्रतीत होने लगे।
उसने सोचा आज नही तो कल ही सही! मुझे अवश्य सफलता मिलेगी।
बस, दूसरे दिन कोशा वेश्या ने अपना प्रयास पुनः जारी रखा। स्थूलभद्र के कोमल दिल को बहलाने के लिए उसने लाख लाख प्रयत्न किए। परन्तु यह क्या? स्थूलभद्र के रोम में लेश भी विकार की भावना उत्पन्न नही हुईं।
अहो! एक और काम के आसनों से चित्रित चित्रशाला ! षडरसयुक्त भोजन , कोशा वेश्या का अद्भुत रूप और लावण्य!! कोशा वेश्या का पूर्ण समर्पण!….. सब कुछ होने पर भी स्थूलभद्र के मन में कोशा के प्रति लेश भी आकर्षण नही बन पाया।
वह कोशा वेश्या अपनी विभिन्न चेष्ठाओं के द्वारा स्थूलभद्र के मन को लुभाने का प्रयत्न करने लगी।
वह अपने भूतकाल को पुनः पुनः याद कराकर स्थूलभद्र को मोहित करने का प्रयास करने लगी……परन्तु उसके सारे प्रयत्न निष्फल ही गए। उसे लेश भी सफलता नही मिल पाई। स्थूलभद्र को लुभाने के लिए वह ज्यों-ज्यों प्रयास करने लगी त्यों-त्यों मानो स्थूलभद्र का ह्रदय और अधिक कठोर बनता गया।
परन्तु स्थूलभद्र महामुनि कोशा वेश्या के सभी सानुकूल उपसर्गों से लेश भी चलित नही हुए। प्रतिकूल उपसर्गो को जीतनेवाले भी कई मुनि, अनुकूल उपसर्गो में परास्त हो जाते है! परंतु स्थूलभद्र महामुनी ने तो अनुकूल उपसर्गो को भी सम्पूर्णतया परास्त कर दिया था।
कोशा वेश्या ज्यों-ज्यों अनुकल उपसर्ग करती गयी, त्यों-त्यों स्थूलभद्र महामुनि की ध्यान धारा और अधिक प्रदीप्त बनती गयी।
कोशा वेश्या ने निरन्तर चार चार मास तक स्थूलभद्र को लुभाने के दावँ फेंक दिए ……. परन्तु उसे निष्फलता ही हाथ लगी……. आखिर हार खाकर वह उनके चरणों में गिर पड़ी । उसी समय स्थूलभद्र महामुनि ने उसे सन्मार्ग का बोध दिया। क्षण विनश्वर देह के सौंदर्य में पागल बनी कोशा वेश्या को उन्होंने आत्मा के शाश्वत और अद्भुत सौन्दर्य का भान कराया। स्थूलभद्र की वाणी सुनकर कोशा वेश्या का मोह दूर हो गया ….. और वह जिनधर्म की उपासिका , श्राविका बन गई। उसने स्थूलभद्र महामुनि के पास जाकर श्रावक जीवन के अलंकार स्वरूप बारह व्रत स्वीकार किए । चतुर्थव्रत के विषय में उसने प्रतिज्ञा की कि राजा प्रसन्न होकर किसी पुरुष को मेरे पास भेजेगा तो उस पुरुष को छोड़कर अन्य सभी पुरुषों का त्याग करती हूँ।

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