देशना समाप्ति के बाद इंद्र महाराजा ने विज्ञप्ति करते हुए भगवंत से पूछा, भगवंत निगोद के इस प्रकार के सूक्ष्म स्वरूप को समझाने वाला कोई व्यक्ति भरत क्षेत्र में है?
सीमंधर स्वामी भगवंत ने कहा, हां! भरत क्षेत्र में मथुरा नगरी में आर्य रक्षित सूरी जी विराजमान है, वे इस प्रकार से निगोद का वर्णन करने में समर्थ है।
सीमंधर स्वामी भगवंत के मुख से यह बात सुनकर इंद्र महाराजा के दिल में उत्सुकता पैदा हुई और वह सीधे महाविदेह क्षेत्र से भरत क्षेत्र में मथुरा नगरी में आ गए।
इंद्र महाराजा ने एक वृद्ध ब्राह्मण का रूप धारण किया। ब्राह्मण की देह लता अत्यंत जर्जरीत थी……… आंखें निस्तेज बनी हुई थी….. मस्तक पर काश पुष्प की भांति सफेद बाल थे….. शरीर कांप रहा था…… हाथ में लकड़ी लिए धीरे-धीरे चल रहे थे……. हाथ व पैर कांप रहे थे…… दांत गिर चुके थे……मुख पर उदासीनता थी…… आंखों में पानी भरा हुआ था….. इस प्रकार क्रश काया का रूप धारण कर इंद्र राजा आर्यरक्षित सूरी जी के पास आए और वन्दन आदि कर गुरु चरणों में बैठे…… तत्पश्चात उन्होंने निगोद का स्वरुप जानने के लिए प्रश्न किया।
निगोद का स्वरूप जानने की जिज्ञासा जानकार सुरिवर प्रसन्न हुए और अत्यंत प्रेमपूर्वक वे निगोद के स्वरूप का वर्णन करने लगे।
ब्राह्मण के वेष में रहे इंद्र महाराजा अत्यंत ध्यानपूर्वक सुनने लगे और बीच-बीच में प्रश्न भी करने लगे।
सुरिवर ने ब्राह्मण वेश में रहे इंद्र की सभी शंकाओं का प्रेम से समाधान किया……. जिसे सुनकर इंद्र महाराजा के आश्चर्य का पार न रहा।
ब्राह्मण विष में रहे इंद्र ने पूछा, भगवन! मेरा आयुष्य कितना है?
अपने श्रुत ज्ञान का उपयोग लगाकरआर्यरक्षित सुरिवर ने कहा, तुम्हारा आयुष्य दिन, मास, वर्ष, हजार वर्ष और लाख वर्ष से भी मापा नहीं जा सकता है। अरे! तुम्हारे आयुष्य को तो लाखों करोड़ों वर्षों से भी मापा नहीं जा सकता है……. तुम्हारा आयुष्य दो सागरोपम का है।…… तुम सोधर्म देवलोक के इंद्र हो….. और मेरी परीक्षा के लिए आए हो।
बस, तत्क्षण इंद्र महाराजा ने ब्राह्मण वेष का त्याग कर दिया और वे अपने मूल स्वरुप में प्रकट हुए।
आर्यरक्षित सुरिवर ने कहा, अन्य मुनियो के समाधान के लिए तुम कुछ समय यहां ठहर जाओ।
इंद्र महाराजा ने कहा, मेरी ऋद्धि और समृद्धि को देखकर कोई साधु भूल से निदान न कर बैठे, इसके लिए मेरा यहां ठहरना उचित नहीं है।