ऊषा रानी का सोनेरी पालव सरोवर के सुमधुर जल पर फैल गया था। पूर्व दिशा में मृदु और शीतल वायु चारों दिशाओं में नवीन जीवन भर रहा था। कोयल का कूजन प्रारंभ हो चुका था।
मां की शुभ आशीष लेकर आर्य रक्षित ने इक्षुवाटिका की और प्रस्थान किया।
मन में उत्साह और उमंग हो तो चरणों में भी सहज गति होती है और मन यदि विषाद ग्रस्त हो तो गति में भी सतत ब्रेक लगा रहता है।
आर्य रक्षित के दिल में उमंग और उत्साह था….. अतः वह अत्यंत प्रसन्नता पूर्वक आगे बढ़ रहा था।
आर्य रक्षित की ख्याति और उसके आगमन को सुनकर अनेक मित्रजन आर्यरक्षित को बधाई और भेंट देने के लिए दशपुर में आ रहे थे। गत दिन भी दूर-दूर से अनेक मित्रजनों ने आकर आर्यरक्षित का अभिवादन किया था।
सोमदेव पुरोहित के एक मित्र को-जो खेती का व्यवसाय करता था, उसे कल देरी से आर्यरक्षित के आगमन के समाचार मिले थे, अतः वह आज सूर्योदय के पूर्व ही अपने गांव से निकलकर सोमदेव पुरोहित के घर आ रहा था। बीच मार्ग में ही उसे आर्यरक्षित मिल गया, उसने आर्यरक्षित का हार्दिक स्वागत किया और उसे इक्षु के दण्ड भेंट देने लगा। आर्यरक्षित ने इक्षुदण्ड गिने बराबर साढे नो टुकड़े थे।
आर्यरक्षित ने कहा-“पूज्यवर! में माता की आज्ञा से बाहर जा रहा हूं….. कार्य समाप्ति के बाद शीघ्र ही वापस जाऊंगा। आप मेरे घर पधारे और माता-पिता को यह भेंट प्रदान करें।
आर्यरक्षित की यह बात सुनकर उस मित्र ने नगर की ओर प्रस्थान किया।
संसार के रंगमंच पर होने वाली घटनाओं के पूर्व संकेत बतलाने में शकुन शास्त्र का एक महत्वपूर्ण स्थान है। शकुन किसी भी घटना का सर्जक नहीं है….. किंतु सूचक अवश्य है शुभ-अशुभ शकुन से हम भविष्य में होने वाली घटनाओं का अनुमान कर सकते हैं।
आर्यरक्षित सोचने लगा- इक्षुवाटिका की ओर ही में जा रहा हूं और मुझे इक्षुखंड के जो शकून हुए हैं…….. वह अत्यंत ही शुभ लगते हैं। जहां तक मुझे लगता है साढे नो गन्नो के संकेत अनुसार मुझे दृष्टिवाद के साढे नो अध्याय अथवा परिच्छेदों का बोध हो सकेगा। इससे अधिक बौध संभव नहीं है।……. इत्यादि सोचते हुए आर्यरक्षित आगे बढ़ने लगा। थोड़ी ही देर में वह इक्षुवाटिका में पहुंच गया।