‘शरम आती हैं।यही कहना हैं न ?’सुन्दरी का चेहरा शरम से लाल होता चला ।
‘अमर…’ वो पेरो से जमीन को खुतरते हुए बोली ,’मुझे तेरे साथ ढेर सारी बाते करनी हैं….।साध्वीजी से मेने सुनी हे वो सारी बाते तुझे बतानी हैं…. और तेरे से भी मुझे ऐसी कई बाते सुननी भी हैं। जेनधर्म का ,सर्वज्ञ शाशन का तत्ज्ञान मुझे तो बहुत अच्छा लगता है….अमर,तुझे भी ये तत्व ज्ञान भाता होगा ?’
‘ सर्वज्ञ वीतराग परमात्म की बताई हुई अनेकान्त दृष्टि मुझे बहुत अच्छी लगी….।’
‘मुझे कर्मवाद बहुत अच्छा लगा ,अमर!’
दोनों का वर्तलाभ् अधुरा रहा, चुकी अन्य दर्शनार्थियो की आवाजाही चालु हो गयी थी। अमरकुमार सोपान उतर गया और सुरसुन्दरी ने उपाश्रय में प्रवेश किया । आचार्य श्री को वंदना की। कुशलता पूछी और विनय से खड़ी रही ।
‘क्यों सुरसुन्दरी !साध्वीजी अध्यन कैसा करवाती हैं?’
‘बहुत अच्छा, गुरुदेव ।वो गुरुमाता तो कितनी करुणा वत्सलता से अध्यन करवाती हैं ।मुझे तो काफी आनन्द मिलता हैं ।तत्वज्ञान भी कितना प्राप्त होता हैं।’
‘ तु पुण्यशाली हैं! तुझे माता तो गुरु मिली ही है, साध्वी भी ऐसे ही गुरु मिली! ‘
‘आपकी कृपा का फल हैं,गुरूदेव!
वत्से !ऐसा ज्ञान प्राप्त करना की चाहे जेसे प्रतिफल सजोगो में भी तू स्वस्थ बनी रहे ।तेरा सन्तुलन यथावत् रहे। तेरी समता -समाधी टिक सके ।अनंत अनंत विषमताओं से भरे इस संसार में एक मात्र सर्वज्ञवचन ही सच्ची शरण रूप हैं आत्मशांति प्रदान कर सकते हैं ।शांतसुधारस का पान करवा सकते हैं।’
‘ आपका कथन यथार्थ हैं,गुरुदेव।’
‘ तेरा आत्म भाव शान्त ,प्रशान्त ओर निर्मल बनता चले ….यही मेरा आशीरवाद हैं,वत्से !’
सुरसुन्दरी हर्षविभोर हो उठी।उसने पुनः पुनः वंदना की और उपाश्रय के बहार आयी।
सुरसुन्दरी अपने महल में आयी ।उसनेँ विचार आचार्य कमलसुरीजी की वाणी के इर्द गिर्द घुम रहे थे। आचार्य श्री की करुणा से गीली आँखे …सुधारस -भरी उनकी वाणी …भव्य फिर भी शीतल उनका व्यक्तित्व! सुन्दरी की अन्तर आत्मा मनो उपशमरस के सरोवर में तैरने लगी !
उस सरोवर के दूसरे किनारे पर जैसे अमरकुमार खड़ा खड़ा स्मित बिखेर रहा था । वो जा पहुँची अमरकुमार के पास ।’अमर ….कितने अदभुत हे ये गुरूदेव !न किसी तरह का स्वार्थ न कोई विकार!
विचार निंद्रा में से वो जगी।
अमरकुमार को कहाँ और कैसे मिलना ,इसके लीये वो सोचने लगी। वो झरोखे में जाकर खड़ी रही । ऊपर निल गगन था। रेशमी हवा उसके अंग अंग में सिहरन पेदा कर रही थी ।सामने रहे आम के वृक्ष पर बेठी कोयल कुकने लगी और सुन्दरी के दिमाग में एक मधुर विचार कुक उठा।
आगे अगली पोस्ट में….