राजकुमारी गुणमंजरी की शादी के समाचार बेनातट राज्य के गाँव गाँव और हर नगर
में प्रसारित किये गये।मित्रराज्यो में भी समाचार भिजवाये गये। गुणमंजरी एवं
विमलयश के रूप-लावण्य की चौतरफ प्रशंसा होने लगी। उनके सौभाग्य के गीत रचे
जाने लगे ! चारो तरफ से राजा लोग, राजकुमार, श्रेष्ठिजन, श्रेष्ठिकुमार….
कवि…. कलाकार वगैरह आने लगे ।
शादी के मंडप को केलपत्र, आम्रमंजरी और रंगबिरंगे फूलो से सजाया गया था। जगह
जगह पर सुन्दर परीचारिकाए सभी आमंत्रित अतिथियों का सस्मित स्वागत करती हुई
खड़ी थी। पूरा मंडप अतिथीगण एवं प्रजाजनों से भर गया था। महाराजा गुणपाल के
आनंद की सीमा नही थी।
राजपुरोहित ने मंत्रोच्चार प्रारम्भ किये। विमलयश और गुणमंजरी की निगाहें
मिली। लग्नमुहूर्त आ पहुँचा था। राजकुमारी ने विमलयश के गले मे वरमाला आरोपित
की। शादी की विधि पूरी हुई।
गुणमंजरी के साथ विमलयश अपने महल में आया । गुणमंजरी के परिचारिकाए पहले से
ही विमलयश के महल में पहुँच गयी थी। परंतु मुख्य परिचारिका तो मालती ही थी।
भोजन वगैरह से निवृत होकर जब गुणमंजरी ने शयनखंड में प्रवेश किया तब पलभर के
लिए वह ठिठक गई….. उसे आश्चर्य हुआ ! शयनखंड में दो पलंग सजा कर रखे गये
थे….। वह ज्यादा कुछ सोचे इसके पहले तो विमलयश ने खंड में प्रवेश किया ।
गुणमंजरी का चेहरा शरम से लाल टेसू सा निखर आया । उसकी पलके नीचे ढल गयी….।
एक मौन मधुर अनुभूति के अव्यक्त आनंद में गुणमंजरी डूब गई। वह भावविभोर होती
हुई… खुशी की चादर में अपने आपको सिमटती हुई पलंग के किनारे पर जाकर बैठ गई।
विमलयश सामने के पलंग पर जाकर बैठा । गुणमंजरी ने सवालभरी निगाह से विमलयश के
सामने देखा। विमलयश कि आंखों में से स्नेह छलक रहा था… । उसके चेहरे पर
स्मित अड़खेलिया कर रहा था। उसने मौन की झील को शब्दों से चीरते हुए कहा :
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