प्रफुल्लित होकर विमलयश ने खंड में जाकर वस्त्र बदले। शुद्ध–सफेद वस्र
पहनकर वह ध्यान मै बैठ गया पद्मासनस्थ बनकर । रात्रि का दूसरा प्रहर बीतने को
था ।
विमलयश ध्यान में गहरे उत्तर गया था …..।
एक दिव्य प्रकाश का वर्तुल उभरा… अदभुत खुश्बु फैलने लगी खंड में…. और
शासनदेवी स्वयं प्रत्यक्ष हुई ।
‘बोल, सुंदरी ! क्यों मुझे याद की ?’
‘माँ, मेरी वात्सल्यमयी माँ ! मुझे गुणमंजरी के साथ शादी रचानी होगी…. पर
बाद में क्या ? क्या अमरकुमार गुणमंजरी की शादी होगी ? उनका जीवन सुखी होगा ?
बस, यह जानने के लिये ही माँ आपको कष्ट दिया है ।’
‘चिंता मत कर…. सुन्दरी, गुणमंजरी और अमरकुमार की शादी होंगी। उसका सहजीवन
सुखमय एवं संतोषजनक होगा। गुणमंजरी माँ बनेगी । उनका पुत्र इस संसार मे
अमरकुमार के यश को फैलाने वाला होगा !’
देवी इतना कहकर अदृश्य हो गई। विमलयश का रोम रोम हर्षित हो उठा। दिव्य खुश्बु
को अपने सीने में भरकर वह आशवस्त हो गया। और वही पर भूमिशयन करके नींद की गोद
में सो गया…. अमरकुमार के सपनो में खो गया। ।
आगे अगली पोस्ट मे…