पुरोहित कहा जाता है, क्या करता है ?’ पुरोहित को नगर के बाहर देवकुलिका में
जाकर जुआ खेलने की आदत थी। चोर भी पहुँच गया देवकुलिका में ! दूसरे जुआरियो के
साथ खुद भी बेठ गया खेलने के लिए ! पुरोहित भी आ पहुँचा था खेलने के लिए। चोर
मौका देख कर खेलने लग गया, पुरोहित के साथ । पहले तो वह जानबूझकर हारता
रहा…. इधर पुरोहित को अपनी छोटी-छोटी जीत होती देखकर ताव चढ़ने लगा। वह बड़ी
बड़ी बाजी लगाने लगा। चोर ने बाजी जितना जो चालु किया…. बस, जीतता ही रहा !
पुरोहित का सब कुछ जीत लिया ! पुरोहित ने जान पर आकर अपनी रत्नमुद्रिका भी लगा
दी दाव पर ! वह भी चोर जीत गया !
इतने में पुरोहित को राजसभा में से बुलावा आया तो वह राजसभा में गया । इधर चोर
पहुँच गया पुरोहित के घर पर ! पुरोहित की पत्नी ने कहा :
‘मै पुरोहित का खास दोस्त हुँ … मेरी बात सुन ! पुरिहित को राजा ने कैद कर
लिया है।
क्यो किया है ?
मुझे पता नही है, पर मुझे पुरोहित ने भेजा है। अभी राजा के आदमी आएंगे और
तुम्हारे घर की सारी संपत्ति छीन लेंगे। तू एक काम कर। जितना भी कीमती सामान
हो….. जवाहरात रत्न… वगैरह हो वह मुझे दे दे…. मै मेरे घर के सुरिक्षत
स्थान पर छुपा दूँगा। देख, तेरे को भरोसा हो इसलिए पुरोहित ने उसकी ये
रत्नमुद्रिका भी मुझे दी है….।’
पुरोहित की पत्नी ने उसके हाथ मे वह रत्नमुद्रिका देखीं । उसे बात सही लगी।
पुरोहित की पत्नी ने घर की तमाम संपत्ति चोर को दे दी….। चोर वह लेकर वहां
से नो दो ग्यारह हो गया । पुरोहित जब उधर घर पर गया तो उसकी पत्नी ने पूछा :
‘आप जल्दी छूट गए…? क्या गुनाह हो गया था ?’
‘कैसा गुनाह…केसी बात ? क्या बक रही है तू ?’
‘पर वह आपके दोस्त आये थे रत्नमुद्रिका लेकर…?’ कौन दोस्त ?’ और पुरोहित
चौका ! जब उसने सारी बात जानी तो बेचारा सर पटक कर रह गया । राजसभा में आकर
महाराजा से सारी घटना बतायी …. सारी राजसभा हँस-हँस के लोट-पोट हो गई !’
‘वाह बड़ा मजाकिया चोर लगता है यह तो….
तो होशियार भी है !
अच्छा, फिर क्या हुआ ?’ विमलयश कि जिज्ञासा बढ़ रही थी ।
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