‘कुमार उस चोर को मालूम हो गया था कि रत्नसार ने मुजे पकड़ने की तैयारी की है
…. इसलिए चोर ने रत्नसार को हई लूटने की योजना बना डाली ।
वह रत्नसार की हवेली में पहुंचा व्यापारी का भेष बनाकर। रत्नसार से उसने कहा :
‘मै परदेशी व्यापारी हूँ…. रत्नों की खरीदी करने आया हूं….। रत्नसार ने
उसे कीमती रत्न जवाहरात वगैराह दिखाया ‘ उसका मूल्य बताया। चोर ने कहा : मैं
कल सवेरे ही पैसे लेकर आऊंगा और रत्न खरीद लूंगा ।’ उसने हवेली का …..
तिजोरी का भली भांति निरक्षण कर लिया ।
वह चला गया अपने घर। रात्री में रत्नसार श्रेष्टि तो चोर को पकड़ने के लिए नगर
दरवाजे पर खड़ा रहा । इधर चोर रत्नसार की हवेली में पहुँच गया। हवेली के
पिछवाड़े की दीवार में सेंध लगा कर वह भीतर घुस गया । तिजोरी तोड़ी और रत्नों का
डिब्बा उठाया । जवाहरात ले लिया । और तो और … रत्नसार के पहनने के सभी कपड़े
भी उठा लिए और चला गया अपने ठिकाने पर !
इधर रत्नसार गुम फिर कर थका हारा वापस घर आया तो चौक उठा …. देखा तो
तिजोरी टूटी हुई थी। बेचारा फुट फुट कर रोने लगा ।सुबह में राजसभा में जाकर
महाराजा के समक्ष शिकायत की। ‘चोर काफी बुद्धिशाली प्रतीत होता है ?विमलयश ने
कहा।
‘कुमार, चोर कोई सामान्य बुद्धि का नही है । उसकी बुद्धि असाधारण है …..।
राजपुरोहित की तो क्या दशा बिगाड़ी है उसने ?’
‘वो कैसे ?’
‘जब रत्नसार चोर को नही पकड़ सका… तब राजपुरोहित ने भरी सभा मे प्रतिज्ञा की
कि मै चोर को पकडूँगा !’
बस चोर को भी भनक लग गयी इस बात की किसी तरह….! उसके बारे में तलाश करके
जानकारी प्राप्त कर ली
आगे अगली पोस्ट मे…