यह तो रोजाना की पीड़ा है…न सह सकते हैं, न किसी से कह सकते हैं ।’
‘कुछ भी उपाय सूझ नहीं रहा है…। किस तरह बेटे को इस तरह की यातना से बचाया जा सके ?’
आंसुभरी आंखों से यज्ञदत्त ने आकाश की ओर देखते हुए कहा ।
‘खुद राजकुमार प्रजा को पीड़ित करें…फिर भी राजा उसे रोक नहीं सकता । किसे जाकर शिकायत करना ? और पुत्र का जीव भी न जाने गत जन्म में कैसे पाप करके आया है ?’
यज्ञदत्त ने कहा ।
‘स्वामी , पुत्र पूर्वजन्म के पाप लेकर मेरे पेट से जन्मा है यह बात सच है, पर हमारे भी तो पूर्वजन्म के पाप हैं ना ? जिससे ऐसा बदसूरत पुत्र हमें मिला । और फिर अपनी आंखों से पुत्र को पीड़ित होते हुए देखना ।’
‘देवी, तुम्हारी बात सही है…। पाप तो तुम्हारे – मेरे और पुत्र तीनों के हैं…। अपने किये हुए पापों की सजा ईश्वर कर रहा है । ईश्वर जो करे सो सही । आदमी क्या कर सकता है ? ईश्वर की इच्छा के बगैर तो एक पत्ता भी नहीं हिलता है ।’
‘क्या ईश्वर दयालु नहीं है ? क्या ईश्वर को हम पर दया नहीं आती होगी ? ईश्वर को हम करुनानिधान कहते हैं…और आप तो त्रिकाल ईश्वरप्रणिधान करते हैं…। तब फिर वह सर्वशक्तिमान ईश्वर इन दुष्टों को , मेरे बेटे पर संत्रास गुजरनेवाले इन कलमूहों को कड़क शिक्षा क्यों नहीं करता ? क्या उसकी बनाई हुई सृष्टि की रक्षा करना उसका कर्तव्य नहीं है…? मुझे रोजाना यह विचार आता है…और सच पूछो तो, मेरी ईश्वर पर की श्रद्धा घटती जा रही है…। रोजाना आपको कहने को मन करता था पर कह नहीं पाती थी…आज मुंह से निकल गई। क्या गलत बात है मेरी ?’ सोमदेवा ने आखिर यज्ञदत्त से अपने मन की बात कह दी ।
यज्ञदत्त वेदों का ज्ञाता एवं कर्मकांडी ब्राह्मण था । ईश्वर के प्रति उसकी श्रद्धा अगाध और अविचल थी । सोमदेवा की बात सुनकर उसका मन जरा दुःखी हुआ…परंतु उसके खुद के मन में भी गहरे गहरे यही सवाल रेंग रहे थे । ‘सर्वशक्तिमान ईश्वर दुष्टों का निग्रह क्यों नहीं करता है ? सज्जनों पर अनुग्रह क्यों नहीं करता है ?’ उसका ज्ञान उसे अधूरा महसूस होता था , फिर भी सोमदेवा को ढाढ़स बंधाते हुए उसने कहा :
‘देवी , ईश्वर की शक्ति पर भरोसा रखो। यह तो ईश्वर हमारे सत्व की…हमारी श्रद्धा की… हमारे धैर्य की परीक्षा ले रहा है ।’
हमारी परीक्षा लेना हो तो ले… पर इस निर्दोष – मासूम बच्चे की परीक्षा तो नहीं ली जा सकती ना ? इतनी क्रूरताभरी परीक्षा ?
आगे अगली पोस्ट मे…