Archivers

श्रीपाल-मयणा सुंदरी – नवपद – आराधना – कर्म-सिद्धान्त…कथा भाग 5

पूर्व भवोंभव में किये पुण्यमयी कार्य, जिनवाणी पर अटूट श्रधा, राजा, रंक या त्रियंच जो भी जीवन मिला… उसे न्यायोच्चित्त जिनवाणी के अनुसार जीने वालो को अवश्य ही उपकारी प्रभु का मार्गदर्शन मिलता है l याद रहे हमारा वर्तमान भी अगले जन्मों का पूर्व भव होगा – तुरन्त जागों ओर आगे बढ़ों l

जगत कृपालु महावीर परमात्मा ने गणधर गौतमस्वामीजी एवं श्रेणिक राजा की उपस्थिति में हुई देशना के अंतर्गत नवपद आराधना का सविस्तार वर्णन किया साथ ही श्रीपाल मयणा की नवपद आराधना का उल्लेख भी किया था l
यह चरित्र 15 वीं शताब्दी में श्री रत्नशेखर सूरीश्वरजी ने प्राकृत भाषा में पद्यमय निबद्ध किया,18 वीं शताब्दी में उपाध्याय श्री विनय विजयजी एवं यशो विजयजी म° सा° ने श्रीपाल चरित्र रास का लेखन किया.. वर्तमान में इसी रास के आधार से ओलीजी के व्याख्यान हो रहे है l
जगत उपकारी भगवन्त महावीर देशना…
उपकारी अरिहंत प्रभु, सिद्ध भजो भगवंत !
आचारज उव्झाय तिम, साधु सकल गुणवंत !!
अर्थ – अनंत उपकारी अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु भगवंतों की उपासना करों l
दरिसण दुर्लभ ज्ञान गुण, चारित्र तप सुविचार !
सिद्धचक्र ए सेवंता, पामिजे भवपार !!
अर्थ : अन्यंत दुर्लभ सम्यग् दर्शन-ज्ञान-चारित्र-तप का शुद्ध भावपूर्वक भजने से जीव भवसागर को पार कर लेता है l
इह भव परभव एह थी, सुख संपद सुविशाल !
रोग शोक व्याधि टले, जिम नरपति श्रीपाल !!
अर्थ :इन नवपद की आराधना करने से इह भव – परभव आत्मसुख एवं राजा श्रीपाल की भांति महाभयंकर आधि-व्याधि-उपाधिओं से मुक्ति मिलती है l
पिछले 9 दिनों में हमने नवपद के सभी नवरत्नों के गुणों का वर्णन पढ़ा, अभी 9 दिनों में श्रीपाल मयणासुंदरी की ओलीजी आराधना द्वारा कर्म से मुक्ति का उपाय जाना… किस प्रकार हंसते हंसते कर्म बंधन किये थे, यह भी जाना, अभी हम सभी को यह तय करना है… हम अपने जीवन चरित्र को कैसा बनाएँ l शुभम् अस्तु ll

जिनशासन का मुलभुत सिद्धांत कर्म क्षय द्वारा मुक्ति की प्राप्ति है, पूर्व भवोंभव में किये पुण्यमयी कार्य, जिनवाणी पर अटूट श्रधा, राजा, रंक या त्रियंच जो भी जीवन मिला… उसे न्यायोच्चित्त जिनवाणी के अनुसार जीने वालो को अवश्य ही उपकारी प्रभु का मार्गदर्शन मिलता है l याद रहे हमारा वर्तमान भी अगले जन्मों का पूर्व भव होगा – तुरन्त जागों ओर आगे बढ़ों l
मन-वचन-काया से और राग-द्वेष से रहित होकर वीतराग भाव से जो आराधना की जाती है, उससे अवश्य ही कर्म क्षय होकर क्रमश.. पुनः जिनशासन, स्वर्ग, मोक्ष सुख की प्राप्ति और परमात्मा भी बनाती है l
आशा करता हूँ , इस कहानी के माध्यम से आपके जीवन में सुविचार, सुकृत और धर्म के प्रति आकर्षण बढ़ेगा, जीवन उसे ग्रहण करने की ओर अनुगामी होगा।।

श्रीपाल-मयणा सुंदरी – नवपद – आराधना – कर्म-सिद्धान्त…कथा भाग 4
April 8, 2017
नई कला – नया अध्य्यन – भाग 8
April 14, 2017

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Archivers