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श्रीपाल-मयणा सुंदरी – नवपद – आराधना – कर्म-सिद्धान्त…कथा भाग 3

पूर्व भवोंभव में किये पुण्यमयी कार्य, जिनवाणी पर अटूट श्रधा, राजा, रंक या त्रियंच जो भी जीवन मिला… उसे न्यायोच्चित्त जिनवाणी के अनुसार जीने वालो को अवश्य ही उपकारी प्रभु का मार्गदर्शन मिलता है l

याद रहे हमारा वर्तमान भी अगले जन्मों का पूर्व भव होगा – तुरन्त जागों और आगे बढ़ों।
मयणासुन्दरी –
प्रातकाल होने पर मयणा ने अपने पति से कहा : हे प्राणेश.. चलो अपने भगवान आदिनाथ के मंदिर जाकर युगादिदेव के दर्शन करें। ऋषभदेव प्रभु के दर्शन करने से दुःख एवं क्लेश का नाश होता है। एकाग्रचित भक्ति भाव से दोनो ने प्रभु दर्शन, चैत्यवंदन, कार्योत्सर्ग आदि करके मयणा प्रभु से प्रार्थना करने लगी : हे प्रभु ! आप जगत में चिंतामणी रत्न के समान है, मोक्ष प्रदान करने वाले है ! शरण में आये इस सेवक के भी आप ही आधार है, हमारे दुःख – दुर्भाग्य को दूर कीजिये l
जिनेश्वर का वंदन-पूजन करके मयणा ने पतिदेव से कहा : प्राणनाथ, पास में ही पोषधशाला में गुरुभगवंत विराजमान है, एवं वे देशना दे रहे है.. हम भी धर्म देशना का श्रवण करें !
देशना के उपरांत मयणा ने गुरुदेव को विनंती करते हुए कहा, गुरुदेव ! आगम शास्त्रों में देखकर ऐसा कोई उपाय बताइये कि आपके इस श्रावक के देह का *कोढ़ रोग नष्ट हो जाय ।
आचार्य भगवंत : तब आचार्य बोले : यंत्र-तंत्र-जड़ी-बुटी-मणिमंत्र-ओषधि आदि उपचार बताना जैन साधुओं का आचार नही है, गुरुदेव ने आगम को देखकर मयणा को कहा.. श्री सिद्धचक्रजी के पट्ट की स्थापना कर नवपद की आराधना-ध्यान-पूजन करें ! यह तप आसोज शुक्ला सप्तमी को आरंभ कर नौ आयम्बिल करें, इसी तरह चैत्र शुक्ला सप्तमी से भी । कुल साढ़े चार वर्ष तक अर्थात 9 ओलीजी की आराधना कपट-माया-दम्भ रहित शुद्ध भक्तिभाव से करें l
नवपद आराधना : इस तप की विशुद्ध आराधना से रोग-दुःख-दुर्भाग्य सभी शांत हो जाते है ! पूजन के पश्चात्त पक्षाल को लगाने से अठारह प्रकार के कोढ़ रोगो का नाश होता है, गुमड़े एवं घाव भी अच्छे हो जाते है, विविध प्रकार की पीड़ा, वेदना सभी दुर हो जाते है । मन-वचन-काया को संयम में रखकर, शुद्ध उच्चारण से, नवपद को समर्पित भाव से धर्मध्यान-आराधना करें, उसकी सभी प्रकार की वेदनाएं दूर होकर इस भव और परभव में भी मनवांछित सिद्धियाँ हासिल होगी l
जिनगुरु मुनिचन्द्रसुरिश्वरजी : ने मयणा को श्री सिद्धचक्रजी का यंत्र बनाकर दिया, एवं सम्पूर्ण विधि समझाकर… शुभ आशीष स्वरूप् वाक्षेप प्रदान किया l वहां उपस्थित श्रावक-श्राविकाओ ने मयणा – उम्बरराणा को अपने घर लेजा कर स्वामीभक्ति की, साधर्मिक भक्ति करने से सम्यक्त्व निर्मल होता है । दोनों ने वही रहकर गुरुदेव की निश्रा में नवपदजी का पूजन, आयम्बिल तप, क्रिया सभी गुरु आज्ञानुसार विधिवत नौ दिनों तक पूर्ण किया l
आयम्बिल के प्रथम दिन से सकारात्मक परिणाम, नवमें
दिन की आराधना पूर्ण होते होते.. उम्बरराणा के सभी तरह के रोग नष्ट होकर.. राणा एक तेजश्वी, कांतिमय, राजकुमार श्रीपाल का रूप फिर से धारण कर लिया l
यह उनके द्वारा पूर्वभव में की गलतियों का उसी भव में आत्मिक पश्च्याताप और यहाँ शुद्ध भाव से जिनशासन के नौरत्नों की आराधना का ही नतीजा था।
पुज्य जिनगुरुदेव की धर्म सभा.. एक धव्नि से जिनशासन महिमा, जैनम् जयति शासनम् और गुरुदेव के उपदेशों की जय-जयकार से गुंज उठी l
गुरुदेव से आज्ञा प्राप्त कर दोनों घर गये, वहाँ कई वर्षो से इंतजार करती श्रीपाल की माता का दिल उन्हें देखकर..इतना प्रफुल्लित हुआ, जैसे उसे संसार के ही नही, स्वर्ग के भी सभी सुख मिल गये हो ! दोनों ने माँ के चरण-स्पर्श किये, माँ ने करुणामयी आशीर्वाद दिया l

आगे अगली पोस्ट मे…

श्रीपाल-मयणा सुंदरी – नवपद – आराधना – कर्म-सिद्धान्त…कथा भाग 2
April 8, 2017
श्रीपाल-मयणा सुंदरी – नवपद – आराधना – कर्म-सिद्धान्त…कथा भाग 4
April 8, 2017

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