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श्रीपाल-मयणा सुंदरी – नवपद – आराधना – कर्म-सिद्धान्त…कथा भाग 2

श्रीपालकुमार राजा के घर जन्म लेकर भी कोढ़ रोग से ग्रस्त क्यों…?
श्रीपाल राजा पुर्व भव में हीरण्यपुर नगर के श्रीकांत राजा थे, जिन्हें शिकार का व्यसन था ! उनकी रानी श्रेष्ठ गुणवाली श्रीमती… जिनकी जैनधर्म पर अटूट श्रधा थी। वह हमेशा राजा को एकांत में समझाया करती थी…प्राणेश ! किसी भी जीव की हिंसा से जन्मोंजन्म तक भयंकर परिणाम भुगतने पड़ते है, इस घर्णास्पद कृत्य से में और पृथ्वी दोनों लज्जित हो रहे है, आदि ! लेकिन गलत मार्ग के व्यसनी इतनी जल्दी कहाँ समझने वाले थे?
एक दिन सात सौ लोगो की टोली के साथ राजा श्रीकांत शिकार के लिए भयंकर जंगल में गये, वहाँ काउसग्ग ध्यान में खड़े एक मुनिराज को देखकर सभी व्यंग के साथ कहने लगे… यह तो किसी रोग से ग्रसित किया है, इसे मारो मारो ! राजा के मुख से निकलते ही सभी ने मिलकर मुनिराज को मारते मारते लोहलुहान कर दिया… इस दृष्य को देख राजा श्रीकांत आनंदरस में डूब गये l
मुनिवर ने तो समता भाव में लीन होकर आत्मकल्याण किया, उधर धर्मानुरागी श्रीमती के बारबार अनंत बार समझाते रहने से… अंतत: श्रीकांत को पूर्व पुण्य के उदय से अपने कुकृत कार्यो का एहसास हुआ, और अपने महापाप का प्रायश्चित करते करते संयम-दीक्षा धारण की l
जिनशासन के नव पदों की आराधना करते हुए श्रीकांत के जीव ने मृत्यु के उपरांत श्रीपाल राजा के भव में जन्म लिया, पूर्वो पूर्व पुण्य एवं कठोर पश्याताप से राजा के यहाँ उम्बर नाम से जन्म मिला, मगर जन्म के साथ ही कोढ़ रोग से ग्रसित थे l
राजा श्रीकांत के पूर्व भव के सात सौ सैनिक भी कोढ़ रोग से ग्रसित होकर मानव जन्म में आये। जब श्रीपाल कुमार बड़े हुए, तब संयोग से एक दिन वह कोढियों की टोली घुमती फिरती उस गाँव में आयी और श्रीपालकुमार को अपने साथ लेजाकर टोली का प्रमुख (उम्बरराणा नाम से) बना लिया l
उधर प्रजापाल राजा ने पुत्री सुरसुन्दरी ( पिता-कर्मी ) को इच्छित वरदान दिया, एवं शंखपुरी के अधिपति रूप के राजा अरिदमन के साथ उसका विवाह राजशाही ठाठ-बाट से किया, दहेज में अनन्य धन-दौलत दास-दासियाँ दी l
घमंडी पिता प्रजापाल ने मयणा को धिक्कारते हुए कहाँ… तूने मेरा अपमान किया है, तू वास्तव में मुर्ख शिरोमणि है, इस राजसभा के समक्ष मेरे मान-सम्मान को भयंकर ठेस पहुंचायी है, इसका दंड तुझे अवश्य मिलेगा।
अगले दिन प्रजापाल शिकार पर निकले, वहाँ एक झुंड को आते देखा, पता लगाने पर मालुम हुआ.. यह सातसौ कोढियों का झुंड है l
राजा का विरोधी मन अहंकार से ज्वलित हो उठा और पुत्री मयणा का विवाह कोढियों के राजा उम्बर राणा के साथ करने का निश्चय कर लिया ! सोचने लगे.. मयणा कर्म-कर्म करती है, वह कर्म का प्रत्यक्ष फल प्राप्त करें, वे कटुवचन मेरे मन मष्तिस्क में अभी भी खटक रहे है…
उम्बर राणा की बरात राजमहल की ओर बढ़ रही है, राणा खच्चर पर सवार है, कोतहुल का माहोल है… सभी रोग से क्षीण है, कोई लुला-लंगड़ा है, कईओं के शरीर पर घाव है, खून टपक रहा है, मक्खियाँ भिनभीना रही है, उनको देखकर लग रहा था.. नरक से भी बदत्तर जिन्दगी जी रहे है l
राजसभा में प्रजापाल ने आदेश स्वरूप कहा… मयणा ! तेरे कर्मो द्वारा प्रदान यह तेरा पति आया है, इसके साथ शादी कर सभी प्रकार के सुखों को तू भोग l
कर्म आधारित भाग्य पर भरोसा करने वाली मयणासुंदरी ने क्षणभर भी विलंब किये बिना दर्द से कहराते हुए कोढ़ीये के गले में वरमाला अर्पित कर उसे पति के रूप में स्वीकार कर लिया ।
रात मे उम्बर राणा लडखडाती आवाज में मयणा से कहते है… खुब गहराई से सोच ले, कंचनवर्णी तेरी काया मेरे संग से नष्ट हो जायगी, तुम देवांगना जैसी… मुझे पति मानना उच्चित नही है…l
पिता के निर्णय से मयणा को क्षण भर भी दुख नही हुआ पर पति से वचन सुनकर मयणा को अपार दुःख हुआ, आँखों से टपटप आँसू टपकने लगे, पति के चरणों में गिरकर बोली… हे प्राणेश्वर..! आप यह क्या बोल रहे है, जैसे सूर्य पश्चिम दिशा में नही उगता, ठीक वैसे ही सती स्त्रियाँ अपने पतिधर्म से कभी नही डगमगाती l

आगे अगली पोस्ट मे…..

श्रीपाल-मयणा सुंदरी – नवपद – आराधना – कर्म-सिद्धान्त…कथा भाग 1
April 8, 2017
श्रीपाल-मयणा सुंदरी – नवपद – आराधना – कर्म-सिद्धान्त…कथा भाग 3
April 8, 2017

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