दुग्धपान का समय हो चुका है….देवी आपकी प्रतीक्षा के रही है |’
तब अमर विचानिद्रा में से जगा | जल्दी से भोजन कक्ष में पंहुचा |सुर सुंदरी उसकी राह देखती बैठी थी |
‘स्वामिन , क्या कोई व्यापारी आ गया था क्या ?’सुंदरी ने हस्ते हुए पूछा !
‘व्यापारी लोग आने चालू होगे तब तो मुझे दूध वही पर मागवा लेना होगा |’
‘मै खुद लेकर हाजिर हौउगी आपकी सेवा में |’
अमरकुमार हंस पड़ा | दोनों ने दुग्धपान किया| दुग्धपान करते करते अमरकुमार यक्ष व्दीप की बात सुंदरी से कही |
‘तो क्या यह बात सच होगी ?’ सुंदरी ने पूछा |
‘सच हो सकती है। नाविक का अनुभव होगा तब ही वो कह रहा होगा न !
‘नहीं !अनुभव होता तो वह जिन्दा कैसे रहता ?’
उसने जाना होगा की यह यक्ष मानवभक्षी है !’
‘उस यक्ष को क्या और कुछ खाने को नहीं मिलता होगा की वह मनुष्य को खा जाता है !’
‘वह खाता नहीं होगा….मार डालता होगा !’
‘पर क्यों ?’
‘उसे शायद मानवजाति पर द्वेष होगा ?’
‘कुछ कारन भी तो होना चाहिए ?’
‘कारन पूर्वजन्म का भी तो हो सकता है न! गत जन्म में मानवो ने इसको खूब दुःख दिया होगा….मारा होगा ….तिरस्कृत किया होगा….इससे इसके मन में मानव जाती पर नफरत पैदा हो गयी होगी ! मरकर वह यक्ष हुआ होगा….अपने विभंग ज्ञान से पूर्वजन्म देखा होगा….
आगे अगली पोस्ट मे…