स्नान वगेरह से निव्रत होकर अमरकुमार मुख्य नाविक से मिला | बाहर जहाजों के बारे में जानकारी ली | समुद्र के हवामान की बाते की | चंपा नगरी से कितना दूर आये….यह भी जान लिया |
‘कुमार सेठ, अपने पास आज का दिन निकल जाय उतना तो मीठा पानी हें ,….पर कल अपन को किसी व्दीपपर रुकना होगा पानी भरने के लिए |’
नाविक ने अमर कुमार से कहा,
अमरकुमार ने पूछा : ‘रास्ते में कोई ऐसा व्दीप वगेरा आता है ?’
‘जी, एक यक्ष व्दीप आता है | उस व्दीप पर पीने का मीठा पानी भी मिल जायेगा |’
‘तब तो अपन कल वही पर डेरा डाल दे | व्दीप है तो सुन्दर न ?’
‘अत्यंत रमणीय व्दीप है । फुल ~फल से हरे भरे असख्य पेड़ ~पोधे है….उद्यान है….बगीचे है ….पर एक बड़ा भय है वहा जाने में !’
‘किस बात का डर ?’
‘यक्ष का !’
‘क्या कहा ? यक्ष का भय ? क्यों ?’
वह यक्ष मानवभक्षी है | जैसे ही यक्ष को आदमी की गंध आती है….वह आदमखोर उस आदमी को ख़त्म किये बगैर नहीं छोड़ता ! इधर से गुजरने वाले प्रवासी इस व्दीप से किनारा करके गुजरते है, यहाँ पर रात तो कोई रहता ही नहीं ! रात रुकना यानि जानबूझकर यक्ष का शिकार होना !’
‘तो फिर अपन कैसे करेगे ?अच्छा, ऐसा करे तो ? अपन वहा कुछ देर दिन में ठहरे….पानी वगैरह निपटाकर जल्द ही आगे चल दे | रात क्या साँझ ढलने से पहले ही वहा से चल देगे | फिर खतरा किस बात का ? हा, व्दीप पर घूमना नहीं होगा |’
‘वैसे तो जब तक भोजन वगेरह तैयार हो तबतक आप व्दीप पर गुम आना ! एकाध प्रहर का समय तो मिलेगा ही !’
‘यह बात ठीक है तुम्हारी !’
‘पर कुमार सेठ , फिर भी अपन को होशियार तो रहना ही होगा ! सावधानी तो पूरी रखनी होगी ! यक्ष तो जब चाहे तब आ सकता है न ?’
‘परदेश में हमेशा जागते ही रहना चाहिए ,
भाई ! जो जगत है सौ पावत है….सोवत हें वो खोवत है !’
अमरकुमार ने समुद्र की सतह पर तैरते अपने बारह जहाजो पर निगाह डाली और व्यापार के विचारो में डूब गया ! जब परिचारिका ने आकर कहा :
‘दुग्धपान का समय हो चुका है….देवी आपकी प्रतीक्षा के रही है |’
तब वह विचानिद्रा में से जगा | जल्दी से भोजन कक्ष में पंहुचा |सुर सुंदरी उसकी राह देखती बैठी थी |
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