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राजा गुणसेन तपोवन में! – भाग 6

राजा गुणसेन ने महामंत्री से कहा :
‘कल सबेरे…… प्राभातिक कार्यो से निपटकर मैं अश्वक्रीडा करने के लिए नगर के बाहर जाना चाहता हूं । तूम सबेरे पहला कार्य श्रेष्ठ घोड़ो को तैयार रखने का करना । तुम्हें भी मेरे साथ आना है ।’
‘महाराजा, नगर के बाहर कुछ ही दूरी पर ‘सहस्त्राम्रवन’ नामक सुहावना उद्यान है ।’ महामंत्री ने कहा ।
‘हम अश्व-क्रीड़ा करने के बाद उस उधान में कुछ देर आराम करेंगे ।’
महामंत्री को विदा कर के राजा गुणसेन अपने शयनखंड में गये । पलंग पर लोटते ही नींद ने उन्हें घेर लिया ।
अगले दिन अश्वक्रीडा-घुडसवारी के अलावा अन्य कोई कार्यक्रम नहीं रखा था । वैसे तो महामंत्री को दुसरे ही दिन क्षिति-प्रतिष्ठित नगर लौटना था, परंतु अश्वक्रीडा में महाराजा के साथ रहने का तय होने पर, उन्होंने एक दिन के बाद जाने का तय किया ।
सबेरे पांच श्रेष्ठ अश्व और अश्वपालकों को राजमहल के आंगन मे उपस्थित कर के, महामंत्री महाराजा के संदेश का इन्तजार करने लगे ।
महाराजा ने स्नान-दुग्धपान वगैरह प्राभातिक कार्य निपटाये । महामंत्री का संदेश मिला । वस्त्रपरिवर्तन करके तुरंत वे बाहर आये । एक मनपसंद घोड़े पर सवार होकर, अश्वपालकों से, और अश्वों को लेकर पीछे पीछे आने का इशारा किया । महामंत्री उनके घोड़े पर सवार होकर, महाराजा के पीछे चले । नगर के बाहर वे एक विशाल पठार-मैदान पर आये ।
राजा गुणसेन अश्वों के साथ खेलने में बड़े निष्णात थे । एक के बाद एक-पॉचो अश्वों के साथ खेलकर आधे प्रहर तक राजा गुणसेन मौज मनाते रहे ।
‘चलो, अब हम सहस्त्राभ्रवन मे चलें ।’ महामंत्री ने अपना घोड़ा उद्यान की ओर मोड़ा । पीछे पीछे गुणसेन का घोड़ा और उसके पीछे दूसरे घोड़े और साईस चलने लगे । सहस्त्राभ्रवन काफी सुहावना एवं लुभावना था । गुणसेन उद्यान को देखकर आनंदित हो उठे । महामंत्री ने पहले ही से वहां पर आम्रवृक्षों की घटा में आये हुए लदामंडप में एक सिंहासन रखवा दिया था ।
राजा गुणसेन लतामंडप में सिंहासन पर जाकर बैठे। महामंत्री के साथ गपशप करने लगे..

आगे अगली पोस्ट मे…

राजा गुणसेन तपोवन में! – भाग 5
February 14, 2018
राजा गुणसेन तपोवन में! – भाग 7
March 16, 2018

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