प्रयाण का शुभ दिन आ पहुंचा।
चुने हुए सैनिक एवं विशाल परिचारक- परिचारिका-वृन्द के साथ राजपरिवार ने वसंतपुर की और मंगल प्रयाण कर दिया। सात दिन की यात्रा के पश्चात् वसंतपुर के बाहरी उपवन में सभी सानंद आ पहुँचे।
वसंतपुर के हजारों प्रजाजन, उनके राजा रानी के दर्शन करने के लिए आतुर थे। उन्होंने वसंतपुर के राजमार्गो को सजाये थे। हर एक स्त्री-पुरूष और बच्चों ने सिंगार सजाया था। आज पहली बार उनके महाराजा वसंतपुर में आ रहे थे। आशाओं और कल्पनाओं के उछलते दरिये को दिल में समा कर हजारों प्रजाजन उनके महाराजा का शानदार स्वागत करने के लिए नाच रहें थे ।
वसंतपुर और आसपास के नगरों की जनता ने राजा गुणसेन और महारानी वसंतसेना की बड़ी प्रशंसा सुनी थी । उनके सत्कार्यो की कीर्ति को जाना था । उनके गाढ प्रजावात्सल्य की प्रशस्तियां सुनी थीं। आज उन्हीं गुणनिधान एवं लोकप्रिय राजा-रानी को रूबरू देखने के लिए हजारो स्त्री-पुरूष एवं बच्चे अपने घरों में से बाहर निकल आये थे । मानव-सागर से जैसे पूरा राजमार्ग उभर रहा था ।
पहले से आये हुए महामंत्री ने संगमरमर के भव्य कलात्मक राजमहल को अत्यंत स्वच्छ एवं व्यवस्थित करवा दिया था । रमणीय उद्यान के मध्य में स्थित राजमहल, शुक्लपक्ष की रात में चन्द्र की चांदनी से स्पर्धा कर रहा था ।
महामंत्री ने महल के द्वार-द्वार पर रत्नों से जड़े हुए और मोतियों से लड़े हुए कलात्मक तोरण बंधवाये थे। रंग-रंग के और तरह-तरह के कीमती वस्त्रों के परदे और झालरें बंधवायी थी। महल के प्रत्येक खंड में चंदन काष्ठ के आसन रखवाकर, उस पर सुगंधित फूलों के गुच्छ रखवाये थे।
महल के चारों और अगरू-धूप के कुंडे जमा दिये थे। उसमें से उठती धुऍ की अगिनत रेखाएं आकाश में फैल रही थी । जमीन पर खुश्बूदार पानी का छिड़काव किया गया । उद्यान के वृक्षो की डालियो पर कोयल कुक रही थी । लतामण्डप में मयूर नृत्य कर रहे थे एवं केकारव कर रहे थे । अनेक सुन्दर पंक्तियों के कूजन वातावरण को मुखरित कर रहा था।
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