यज्ञदत्त ने स्वागत वचन कहे और द्विजश्रेष्ठ को बैठने के लिए काष्टसन दिया । द्विजश्रेष्ठ ने कहा : ‘महानुभाव, हम नगर के श्रेष्ठ के पास जाकर सारी बात करे ।’
यज्ञदत्त के साथ द्विजश्रेष्ठ नगरशेठ की हवेली पर आये । नगरश्रेष्ठि प्रभातिक कार्यो से निवर्त्त होकर बैठे हुए थे । उन्होंने दोनो ब्राह्मणों का उचित स्वागत किया । और सेवक ने उन्हें बैठने के लिये आसन दिये ।
द्विजश्रेष्ठि ने यज्ञदत्त के सामने कहा : ‘महानुभाव, रात को जो भी घटना हुई…. यह यथार्थरूप मे, नगरशेठ के समक्ष कह दें ।’
यज्ञदत्त ने जो बात हुई थी…. वह कह सुनाई । नगरश्रेष्ठि चौक उठा । साथ ही यज्ञदत्त ने कल हुई घटना भी कह दी । किस तरह खून सने कपड़े एवं जख्मी हालत में वह अग्नि को गाँव के बाहरी मंदिर के चबूतरे पर ले आया था, वह बात कही । यज्ञदत्त की बाते सुन कर नगरश्रेष्ठि ने मजबूती के आवाज़ में कहा।
‘अब तो हमे स्वयं उस चंडाल-चौकड़ी की अक्ल को ठिकाने लाना होगा । इसके लिये राजसत्ता के सामने बगावत का झंडा उठाना पड़ेगा तो उठाएंगे। प्रजा को इस तरह उन दरिंदो की क्रूरता का शिकार नही होने दिया जा सकता ! यज्ञदत्त ! तुम जाओ तुम्हारे घर पर । अब तुम्हारे पुत्र की तलाश में खुद करवाऊंगा ।’
द्विजश्रेष्ठ को प्रणाम करके, उन दोनों को नगरसेठ ने बिदाई दी । बिदाई देकर तुरंत उन्होंने महाजन को बुला लाने के लिए अपने नौकरो को भेजा ।
‘आज तो किसी भी कीमत पर राजकुमार को, उसके चचेरे भाई कृष्णकांत को, मंत्रीपुत्र व सेनापति पुत्र को सीधा करना होगा । वे लोग समझाने से नही समझेंगे ! दूसरा कुछ कारगार उपाय खोजना होगा ।
नगरश्रेष्ठि का संदेश मिलते ही एक के बाद एक महाजनो के रथ नगरश्रेष्ठि की हवेली के बाहर आने लगे। दो घड़ी में तो सारा महाजन उपस्थित हो गया । नगरसेठ ने महाजन का स्वागत करके, यज्ञदत्त से सुनी हुई बात यथावत कही और पिछली रात से अग्निशर्मा लापता है, वह बात भी कही ।
महाजन व्याकुल हो उठे ।
हम सब मिलकर महाराजा से भेट करे। शायद, कल की एवं पिछली रात की घटना से महाराजा वाकिफ नही हो ! उनके समक्ष ही चंडाल चौकड़ी को बुलाया जाए व उनसे जवाब-तलब किया जाए । इसके बाद क्या करना ? इस बारे में आज रात्रि में हम सब वापस मिलेंगे और सोचेंगे। ठीक है ना ? नगरसेठ ने पूछा ।
सभी ने जवाब दिया : ‘बराबर है ।
‘तब फिर चलें …. सभी अपने अपने वाहन में बैठ जाएं ….और अभी-इसी वक़्त महाराजा के पास चलें।
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