_*श्री पार्श्वनाथ भगवान के 2894 वें जन्म दिवस के पावन अवसर पर विशेष प्रस्तुति…*_
*【 पोष वदी १०, दिनाँक : 23.12.2016 】*
*श्री पार्श्वनाथ भगवान् का इतिहास*
_*च्यवन : चैत्र वदी ४*_
_*जन्म : पोष वदी १० वाराणसी*_
_*दीक्षा : पोष वदी ११ काशीनगरी*_
_*केवलज्ञान : चैत्र वदी ४ काशीनगरी*”_
_*निर्वाण : श्रावण सुदी ८ श्री सम्मेदशिखरजी, माक्ष क्षमण तप -कार्योत्सर्ग अवस्था में*_
इसी जम्बूद्वीप के दक्षिण भरतक्षेत्र में एक सुरम्य नाम का बड़ा भारी देश है। उसके पोदनपुर नगर में अतिशय धर्मात्मा अरविन्द राजा राज्य करते थे। उसी नगर में विश्वभूति ब्राह्मण की अनुन्धरी ब्राह्मणी से उत्पन्न हुए कमठ और मरुभूति नाम के दो पुत्र थे जोकि क्रमश: विष और अमृत से बनाये हुए के समान मालूम पड़ते थे। कमठ की स्त्री का नाम वरुणा तथा मरुभूति की स्त्री का नाम वसुन्धरा था। ये दोनों ही राजा के मन्त्री थे। एक समय किसी राज्यकार्य से मरुभूति बाहर गया था तब कमठ मरुभूति की स्त्री वसुन्धरा के साथ व्यभिचारी बन गया। राजा अरविंद को यह बात पता चलते ही उन्होंने उस कमठ को दण्डित करके देश से निकाल दिया। वह कमठ भी मानभंग से दु:खी होकर किसी तापस आश्रम में जाकर हाथ में पत्थर की शिला लेकर कुतप करने लगा। भाई के प्रेम के वशीभूत हो मरूभूति भी कमठ को ढूंढ़ता हुआ उधर चल पड़ा। उसे आते देख क्रोध के आवेश में आकर कमठ ने वह हाथ की शिला उसके सिर पर पटक दी जिससे मरुभूति मरकर सल्लकी वन में वङ्काघोष नाम का हाथी हो गया। किसी समय अरविन्द ने विरक्त होकर राज्य छोड़ दिया और संयम धारणकर सब संघ की वंदना के लिये प्रस्थान किया। चलते-चलते वे उसी वन में पहुँचकर सामायिक के समय प्रतिमायोग से विराजमान हो गये। वह हाथी संघ में हाहाकार करता हुआ अरविन्द महाराज के सन्मुख आकर मारने के लिए दौड़ा, तत्क्षण ही उनके वक्षस्थल में वत्स के चिन्ह को देखते ही उसे पूर्वभव के संबंध का स्मरण हो आया, तब वह पश्चाताप से शांत होता हुआ चुपचाप खड़ा रहा। अनंतर अरविन्द मुनिराज ने उसे धर्मोपदेश देकर श्रावक के व्रत ग्रहण करा दिये। उस समय से वह हाथी पाप से डर कर दूसरे हाथियों द्वारा तोड़ी हुई वृक्ष की शाखाओं और सूखे पत्तों को खाने लगा। पत्थरों के गिरने से अथवा हाथियों के समूह के संघटन से जो पानी प्रासुक हो जाता था, उसे ही वह पीता था तथा प्रोषधोपवास के बाद पारणा करता था। इस प्रकार चिरकाल तक महान तपश्चरण करता हुआ वह हाथी अत्यन्त दुर्बल हो गया। किसी दिन वह हाथी पानी पीने के लिए वेगवती नदी के किनारे गया और कीचड़ में गिरकर पँâस गया, निकल नहीं सका। वहाँ पर दुराचारी कमठ का जीव मरकर कुक्कुट सर्प हुआ था, उसने पूर्व वैर के संस्कार से उसे काट खाया जिससे वह हाथी महामंत्र का स्मरण करते हुए मरकर बारहवें स्वर्ग में देव हो गया। इधर वह सर्प पाप से मरकर तीसरे नरक चला गया l