प्रशांत यामिनी सर्द खामोशी में लिपटी लिपटी महक रही थी । नीलगगन के चांद
बदलियों के संग आंखमिचौली को देख रहे थे।
अतिथिगृह की अट्टालिका पर से कोई मधुर विणा के स्वरो का कारवां वातावरण में
फेल रहा था ।शब्द भी जहा बर्फ बन जाये वैसी तन -मन को छू जाने वाली सुरवाली
में से अपने आप भाव प्रगट हो रहे थे ।भावुकता भरे दिल को तो एक ही लगता जैसे
कि किसी की चाहत बुला रही है ।कोई पागल प्रेमी स्वरों के साये में लिपटा हुवा
पुकार रहा है ।
जिंदगी को वासंती जुले पर जुलाये वैसी वह सुरमोहिनी लगता था घनी रात के साये
में बेनातट की गलियों में घूम रही थी ।सांस थाम कर सुनने की ललक उठे वैसी स्वर
गंगा प्रवाहित हो रही थी ।
राजमहल के एक शयनकक्ष में युवान राजकुमारी भर नींद में से जग गई थी। कलेजा हाथ
मे लुए जैसे वो एकतान हो कर जैसे वो सुरवाली को पी रही थी ।किसी गंधवंकुमार का
मधुर वीणावादन आज वह पहली -पहली बार सुन रही हो वैसा महसूस हो रहा। आज से पहले
वीना के स्वर उसने जैसे सुने ही नही थे।
मखमली सेज पर सोई हुई राजकुमारी को स्वप्नसृष्टि में घुमने के लिए विणा के
मंदिर सुरो का साथ मेला ! उसकी आन्तरसृष्टि में नए -नए रंग -तरंग उछल ने लगे।
राजसभा में पहली नजर देखा हुवा परदेशी राजकुमार उसकी कल्पनासृष्टि में साकार
हुवा -यह वही होना चाहिए उसी कलाकार राजकुमार का यह वीणावादन लगता है। उसके
नाजुक मन ने अनुमान किया और नाजुक ह्रदय ने अनुमान को सत्य रूप में मान लिया।
तन्वी दहलता वाला गौरवर्णा वाला सुंदर युवान !घुंघराले काले कजरारे केश
-!कोमल कमल से स्वच्छ नेत्र -! कमलदण्ड से सुकोमल- सुहावने हाथ -! गले मे
लटकती सच्चे मोती की झील मिलाती माला !
एक मनोहर कल्पनाचित्र राजकुमारी की कोमल कल्पना में खड़ा हुआ -और मधुर स्वर
के मोहक कच्चे धागे से तारो में उसने प्रथम प्रीत की गांठ बांध ली ।विणा के
सुरो को बाहर वाला विमलयश उसके ह्रदय का वल्लभ हो गया ।
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