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नदिया सा संसार बहे – भाग 4

एक दिन महाराजा ने सुरसुन्दरी को विदेशयात्रा के संस्मरण सुनाने का बहुत आग्रह किया । सुरसुन्दरी पहले तो आशंका से सहम गई, पर फिर उसने इस ढंग से सारी बातें कही ताकि महाराजा को अमरकुमार के प्रति तनिक भी अभाव या दुर्भाव न हो । यक्षद्वीप से लगाकर बेनातट नगर में वापस अमरकुमार का मिलन हुआ, वहां तक का सारा व्रतांत कह बताया ।

महाराजा   रिपुमर्दन तो सुरसुन्दरी के सुख-दुःख  का इतिहास सुनकर स्तब्ध हो गये । श्री नवकार मंत्र के अचिंत्य प्रभाव को जानकर उनका ह्रदय परमेष्ठि भगवंतों के प्रति दृढ़ प्रीति-श्रद्धावाला बना । रत्नजटी के प्रति उनके दिल में अपार स्नेह और सदभाव जगा । गुणमंजरी के साथ शादी की बात सुनकर तो उन्हें हंसी आ गई । कर्मो के विचित्र उदयों का तत्वज्ञान पाकर वे संसार के प्रति भी वैरागी हो उठे । उनके दिल में अमरकुमार के प्रति न तो अभाव हुआ न ही नाराजगी रही ।

‘पिताजी, कृपा कर के ये सारी बातें मेरी माँ को मत कहना…. अन्यथा वह बड़ी दुःखी- दुःखी हो उठेगी । उनका कोमल दिल इन बातों को, उसकी बेटी की यातनाओं को झेल नही पायेगा  !  उसे उसके जमाई के प्रति शायद….।’

‘तू निश्चित रहना बेटी, यह बात मेरे पेट में ही रहेगी ! संसार में कर्मपरवश जीव को ऐसे सुख-दुःख उठाने ही पड़ते है । अपने बांधे हुए कर्म अपन को ही भुगतने पड़ते है ! यह बात मै क्या नही जानता हूं  ?’

सुरसुन्दरी गुणमंजरी का बराबर ध्यान रख रही है । मालती को उसने गुणमंजरी की सार-सम्हाल लेने का कार्य सौंप दिया है ।

सुरसुन्दरी सवेरे सवेरे अमरकुमार और गुणमंजरी के साथ बैठकर श्री नवकार मंत्र का जाप करती है, पंच-परमेष्ठि भगवंतों का स्मरण-ध्यान करती है, गीत-गान करती है । तीनों साथ साथ जिन-पूजा करने जाते है ।  अमरकुमार ने चंपानगरी के बीचोंबीच ही भव्य जिनमंदिर का निर्माण करवाने का कार्य जोरशोर से चालू करवा दिया । सुरसुन्दरी की मनोकामना के अनुसार, चंपा राज्य के गाँव गाँव में और नगर-नगर में जिनमंदिर के निमार्ण की योजना बना दी गई । सवालाख जिनप्रतिमाओ को निर्मित करने के लिये उसने राज्य के श्रेष्ठ शिल्पशास्त्रविशारदों को चंपा में निमंत्रित किये है । मृत्युंजय के माध्यम से सारे राज्य में किसी को क्या दुःख है.…… किसी को क्या जरूरत है….. इसकी जानकारी प्राप्त करके प्रजाजनों के दुःख दूर करने का कार्य भी प्रारंभ कर दिया है ।

सुरसुन्दरी और गुणमंजरी की एक एक इच्छा को पूर्ण करता हुआ अमरकुमार गाँव नगर में और समूचे राज्य में लोकप्रिय हो गया । दान-शील और नम्रता के गुणों में यह ताकत छुपी हुई है ।

कभी सुरसुन्दरी और गुणमंजरी के साथ अलग अलग तीर्थो की यात्रा करने चला जाता है…. कभी उधान-बगीचों में जाकर क्रीड़ा करते है । कभी चौपाट खेलने बैठ जाते है  !

आगे अगली पोस्ट मे…

नदिया सा संसार बहे – भाग 3
November 3, 2017
नदिया सा संसार बहे – भाग 5
November 3, 2017

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