Archivers

माँ का दिल – भाग 3

एक दिन ऐसा आ भी गया कि जिस की धनावह सेठ प्रतीक्षा कर रहे थे। धनवती ने खुद ही कहा :
‘जोशीजी के पास अच्छा मुहूर्त निकलवाया ?’
‘किस के लिये?’
‘अमर की विदोषयात्रा के लिये ही तो?’
‘तो क्या तुमने इजाजत दे दी ?’
‘हाँ , आज अमर ही आया था मेरे पास …. बे … चा …. रा … बोल ही नहीं पा रहा था …. । ‘शायद मेरी मां को आघात लगेगा तो ? इसलिये मैंने खुद ने ही उसे कहा:
‘बेटा तू मेरी इजाजत लेने के लिये आया है न ? तुझे विदेशयात्रा करने के लिए जाना है न ?’
उसने सर झुकाकर हामी भरी । मैंने कहा : ख़ुशी से जा बेटे । जवान बेटा तो देश-परदेश घूमेगा ही … इसी में मैं खुश हूं …. बेटा… अमर …’
उस समय उसकी आंखों में ख़ुशी के आंसू छलक आये … और उसने मेरी गोद में सर रख दिया ।’
‘अच्छा किया तुमने । तुम्हे अपने दिल में लेकर अमर विदेश यात्रा पर जाय … यह मैं चाह रहा था । द्रव्य से भले वो दूर चला जाये…. पर भाव से तो अपने पास ही रहेगा ।’
‘तो अब मुहूर्त ?’
‘मुहूर्त तो निकलवाता ही हूं… पर अपनी पुत्रवधु के लिये महाराजा एवं महारानी को बताना तो चाहिए ही न ।’
वह मैं आज ही निपट लुंगी ।’
‘तो मै अमर को बुलवाकर … कुछ बातें कर लूंगा । परदेश में जाने का है… उसे मुझे कुछ सतर्कताएं बरतनी सीखानी है … जिससे उसकी यात्रा सफल हो .. और वह सुखरूप वापस लौटे ।’
‘जरूर । आप उसके साथ बातें करें … मैं राजमहल को जा रही हूं ।’
धनावह सेठ का मन प्रफुल्लित हो उठा । सेठानी वस्त्र परिवर्तन करके सुरसुन्दरी को साथ लेकर रथ में बेठकर राजमहल जाने के लिये चल दी ।

आगे अगली पोस्ट मे…

माँ का दिल – भाग 2
May 29, 2017
माँ का दिल – भाग 4
May 29, 2017

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Archivers