दुःख में से द्वेष पैदा होता है…. और दुःख में से वैराग्य भी पैदा होता है ।
अग्निशर्मा के चित्त में वैराग्य पैदा हो गया ।
‘लोगो की ओर से मुझे घोर अवहेलना सहन करना पड़ती हैं। असहन्न संयम व नारकीय वेदना सहना पड़ती हैं। कोई भी मुझे बचा नही पाता हैं। न मेरी माँ मेरी रक्षा कर पाती है…. न मेरे पिता मुझे सुरक्षा दे सकते है ।
कितनी विवशता है मेरी ? मै कितना अनाथ हूँ। कैसी मेरी बेबसी है ? पूरे नगर में ऐसी कदथर्ना केवल मुझे ही उठानी पड़ती है। मेरे अलावा और किसी की भी इतनी घोर अवहेलना नही होती होगी।
ऐसा क्यों ?
मेरे पिता के मुंह से मैने कई बार सुना है… ‘पाप से दुःख आता है… धर्म से सुख मिलता है ।’
जरूर, मैने गत जन्म में कई पाप किये होंगे । पूर्वजन्म में मेरी आत्मा ने औरो का तिरस्कार किया होगा । दुसरो का उत्पीड़न किया होगा । दूसरे जीवो को दुःखी किये होंगे । इसका ही फल क्या मुझे इस जन्म में उठाना पड़ रहा है ?
हाँ, वर्ना इस जन्म में मैने गुणसेन राजकुमार का कुछ भी तो नहीं बिगड़ा है। उसे मैने कुछ भी दुःख नही दिया है। न उसके मित्रो को कभी सताया है। फिर वे लोग क्यो मुझे इस तरह बेरहमी से सताते है ? पिताजी कहते है , ‘कारण के बगैर कोई कार्य होता नही है ।’
इस जन्म में ऐसा कोई पाप भी मैने नही किया है, जिसके फल-स्वरूप इतना घोर तिरस्कार मुझे उठाना पड़े । मानना ही होगा कि गत जन्म में मैने पाप किये है ।
यह तो मेरा अनुमान है। कार्य पर से कारण का अनुमान होता है….। वैसे तो सर्वज्ञ महापुरुष ही कार्य-कारण को प्रत्यक्ष देख सकते है ।
कैसा बेढंगा…. बदसूरत शरीर लेकर पैदा हुआ हूं । जब में छोटा था… पर कुछ समझने लगा था…. तब मेरी माता ने मेरे पिता से पूछा था : मेरी कोख़ से ऐसा बदसूरत पुत्र क्यो पैदा हुआ ? अधकांश तो पुत्र या पुत्री, माता या पिता का रूप लेकर, रंग व आकर लेकर ही जन्म लेते है ! इस पुत्र में न तो आपका रूप है…. न मेरा रंग या रूप है ! न तो मेरा आकार है, न आप की प्रतिकृति है…..। यह कैसे हुआ होगा ?’
मै आंखे मुंद कर सो रहा था । मुझे नींद नही आई थी । मै माता-पिता की वार्तालाप सुन रहा था । और उसे समझने की कोशिश कर रहा था ।
आगे अगली पोस्ट मे…