अंजान आदमी पर औरत को एकदम भरोसा नहीं करना चाहिए , पर मै कर बैठी । मै इसके मीठे वचनों में फस गयी । क्या दुनिया के सभी लोग ऐसे बेवचनी औऱ बेवफा होते हैं ? अब मै किसी भी आदमी का भरोसा नही करुँगी कभी । जान की बाजी लगाकर भी मैं अपने शील का रक्षण करुँगी । यह दुष्ट मुझे अपनी संपत्ति की लालच दिखा रहा है, जैसे में भुवखंड होऊ….इसको क्या पता नही है कि मेरे पिता राजा है । और मेरे पति धन्नाढय श्रेष्ठी ! इसकी संपत्ति से ढेरो ज्यादा संपत्ति मेरे पीहर और ससुराल में है । मै एक राजकुमारी हु ….यह भी यह मूर्ख भूल गया ।
यह मुझे अबला समझ रहा है….यह मुझे अनाथ….असहाय मान रहा है ….इसलिये मेरी आबरू छीनने पर उतारू हो आया है….पर किसी भी कीमत पर में अपने शील को बचा ऊगी । उसके हाथों नही बिकुगी । श्री पंच परमेष्ठी भगवंत सदा मेरी रक्षा करेंगे । मुझे उन्ही की शरण है ।’
और, उसे नवकार मंत्र याद आ गया । ‘ओह ! आज जाप करना तो अभी बाकी है….मै भी कितनी भुलक्कड़ हुई जा रही हूं इन दिनों ।’ उसने जमीन पर आसान बिछाया औऱ स्वस्थ मन से जाप करना प्रारंभ किया ।
मद्धिम सुरो में उसने नमस्कार महा मंत्र का उच्चारण चालू किया ।धीरे धीरे वो ध्यान की गहराई में डूबने लगी ….ध्यान में डूबी उसे लगा कि कोई दिव्य आवाज उसे सम्बोधित कर रही है , ‘बेटी, समुद्र में कूद जा ! निर्भय बनकर कूद जा दरिये में ।’
सुंदरी ने आँखे खोलकर खंड में चौतरफ देखा….’किसने मुझे समुद्र में कूद गिरने का आदेश दिया ? यहां कोई तो नही?’….वह खडी हुई….और खंड में टहलने लगी।
‘मुझे समुद्र में कूद गिरना चाहिए….बिल्कुल सही बात है….तो ही मेरा शील अखंडित रहेगा। वर्ना यह कामाघ बना सेठ मेरे पवित्र देह को कलंकित करके रहेगा । प्राण बिना के देह को भी यह मसल डालेगा ।’
उसने कमरे की एक बारी खोल दी । समुद्र उछाले भर रहा था । वो अपलक देखती रही दरिये के उफनते पानी को ! समुद्र गरज रहा था ….जैसे कि वह सुरसुन्दरी को बुला रहा हो । ‘आजा….बेटी ! चली आ मेरे उत्संग में ! तुझे और तेरे शील को जरा भी आंच नही आयेगी….निर्भय बनकर चली आ । तेरे दिल मे धर्म है वैसे मेरे भीतर भी धर्म है….आजा…. भरोसा रखकर ।’
सुरसुन्दरी ने मन निर्णय किया सागर की गोद मे समा जाने का ।
उसके चहरे पर निश्चितता उभरी
दरवाजे पर दस्तक हुई । सुंदरी ने दरवाजा खोला तो सामने धनंजय खड़ा था ।
‘चल भोजन कर ले ।’
नही….मुझे खाना नही खाना है ।’
‘क्यो?’
‘भूक नही है….’
‘अच्छा, ठीक है….विचार कर लिया ?’
‘हां !’
‘मेरी बात कबूल है न ?’
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