धनंजय के इन शब्दों ने सुरसुन्दरी को चोका दिया वह सावध हो उठी | उसकी आँखो में से कोमलता गायब हो गई | फिर भी उसने संयत शब्दों में कहा :
‘तुमने मुझे वचन दे रखा हें , क्या भूल गये उसे ?’
‘नहीं….ऐसे वचन को निभाने ने की ताकत मुझ में नहीं है | मै तुझे मेरी प्रिया बना कर सुखी करुगा | मेरा यही इरादा उस समय था और आज भी है |’
‘ मै सुखी हु ही ! मुझे सुखी बनाने के ख्वाब देखने की जरुरत नहीं है | आपको अपना वचन निभाना चाहिए |’
‘एक बार तो मेने बोल दिया…मै नहीं निभा सकता ऐसे वचन ! मै तो सुंदरी तेरी इस अप्सरा जैसी खूबसूरती का दीवाना हो चूका हु | मै तेरी जवानी को देखता हु और मेरा अंग अंग सुलग उठता है | मेरी रातो की नींद गायब हो गयी है | सुरसुन्दरी, खाना पीना भी हराम हो गया….’
‘यह तो तुहारा धोका है, विश्वास घात है, तुम बड़े व्यापारी हो, तुम्हे इस तरह वचन भग नहीं करना चाहिए | पर~स्त्रीगमन का पाप तुम्हारा सर्वनाश करेगा |’ भला, चाहोतो इस पापी विचारो को दरिये में फेक दो |’
‘अरे दरिये में तो तू उस कुर अमरकुमार की याद को फेक दे | मेरी पत्नी हो जा | ये आपर संपत्ति तेरे कदमो में होगी | मेरे साथ संसार के स्वर्गीय सुख भोग | मै तुझे कभी दुखी नहीं होने दुगा |’
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