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जीवन जैसे कल्पवृक्ष – भाग 7

एक दिन धनावह सेठ की पेढ़ी पर सिंहलद्वीप के शाह सौदागर आ पहुंचे। वे अपने साथ लाखो रुपयों का माल लेकर आये थे। धनावह सेठ ने उनका स्वागत किया। अतिथिगृह में उन्हें स्थान दिया। और मुँह मांगी कीमत चुकाकर उनका माल खरीद लिया। व्यपारि भी खुश खुश हो उठे। उन्होंने भी धनावह सेठ से दूसरा लाखो रुपयों का माल खरीद कर अपने जहाँज भरे । अमरकुमार ने व्यापारियों से पूछा :’यहाँ से तुमने जो माल खरीदा-जो जहाज भरे,वह माल कहा ले जाओगे। ‘सिंहलद्वीप में।
‘वहां इस माल की कीमत अच्छी होगी, नही?
अरे छोटे सेठ, दस गुनी कीमत मिलेगी वहाँ तो।अमरकुमार तो कीमत सुनकर ठगा ठगा सा रह गया।
व्यापारियों ने अमरकुमार से कहा – ‘छोटे सेठ, पधारिये आप हमारे देश में। हमारा देश आप देखे तो सही। हमे भी आपकी खातिरदारी का मौका दीजिए।
व्यापारी तो चले गये… पर अमरकुमार के मन में उनकी बाते बराबर जम गयी। दूर-सुदुर के देश-विदेश देखने एवं अपने बुद्धि-कौशल्य के विपुल सम्पति कमाने का इरादा जोर पकड़ता गया। बाप की कमाई आखिर बाप की कमाई ! बाप की कमाई पर जीने वाले बेटे पिता की इज्ज़त नही बढ़ाते ! पिता की कीर्ती को बढ़ाते है,स्व कमाई-अपने आपकी कमाई पैदा करने वाले पुत्र! दुनिया भी उन्हीं के गुण गाती हैं।
‘में अपनी कमाई करूँगा….. सिंहल्दीप जाऊँगा… उसके मन में सुरसुन्दरी आ गयी, माता धनवती का प्यार साकार हो उठा। ‘इन सबको छोड़कर में कैसे जा सकता हु ? इनके बिना क्या मैं जी सकूँगा? मेरे बगैर मा रह पायेगी? सुरसुन्दरी? नही..नही जाना विदेश।पिताजी भी इजाजत नही देंगे किसी भी हालत में। माँ तो मेरे परदेशगमन की बात सुनकर ही बेहोश हो जायेगी।सुन्दरी को कितना आगत लगेगा..नही …नही।
अमरकुमार का मन अस्वस्थ होंने लगा। फिर भी वह अपनी बैचेनी को बाहर प्रकट नहीं होने देता है। किसी को भी वह अस्वस्थता का इशारा भी नही लेने देता।एक ओर स्वकमाई करने की तमन्ना… विदेश देखने की प्रबल तमन्ना… दूसरी ओर माँ की अटूट ममता…. पत्नी का असीम प्यार…इस कश्मकश ने उसके चित को चंचल बना डाला। उद्विग्न बना डाला। चतुर सुरसुन्दरी भाप गयी अमरकुमार की इस उद्विग्नता को उसे लगा….कुछ करण है…..अमरकुमार इन दिनों परेशान नज़र आ रहे है…. उखड़े उखड़े से लग रहे है।

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