महाराज के साथ नगर के बाहरी इलाके में आये । महाराजा ने अपने सेवको से कहा
: ‘चिता रचा दो ।’
बेचारा सेवक ! आंसू बहाती आंखों से और भारी दिल से राजा की आज्ञा का पालन करते
हुए चिता रचाने लगा ।
महाराजा और महारानी जमीन पर बैठ गए । महाराजा ने श्री नवकार महामन्त्र का मंगल
स्मरण किया । वे महामन्त्र के जाप में लीन हो हुए । उनका शरीर रोमांच से लीन
हो उठा । आंखों में से बर बस आंसू बहने लगे। पंचपरमेष्टि भगवन्तों का
स्तुतिगान उनके होटो पर अनायास छलकने लगा :
ओ पंच परमेष्ठि भगवंत !
मेने सदा सदा जे लिए मेरी शेम कुशल के सारी की सारी चिंता आपके चरणों मे रख दी
है । यदि इन संकट की घड़ियों में भी आप सहारा नही देंगे मुझे ! आप मेरा त्याग
कर देंगे तो फिर तीन लोक में आपका विश्वास कौन करेगा ? विश्व मे आपकी करुणा
नि:सहाय-निराधार बन जायेगी !
हे महामन्त्र नवकार !
जैसे सरयू के पावन नीर में काष्ट डूब नही जाता अपितु तैयारता है, वैसे ही आपकी
करुणा के नीर में भव्य जीवात्मा तैरते है…,आपका वह करुणाप्रवाह मेरे सारे
संकटो को दूर हटा दें….हमारी आफतो को नष्ट कर दे…!
हे पंचपरमेष्टि प्रभो !
आप ही धर्म का उधभवस्थान रूप हो । जगत के अज्ञान-अंधकार को दूर करने वाले हो ।
आपका ऐसा दिव्य स्वरूप हमारे जीवन-ताप को दूर करे…ह्रदयसंताप को चूर चूर कर
दे । सुख का नूर जीवन मे भर दे ! हमारी बिगड़ी हुई बात को बना दे । दुख-संताप
के दलदल में फसा हमारी जीवननौका को
सुख शांति के नीर में पहुँचा दे !
आगे अगली पोस्ट मे…