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हँसी के फूल खिले अरसे के बाद – भाग 4

देवी ऊँचे घर के लोग हमेशा दूसरों की ही चिंता ज्यादा करते है। इसलिए मेने अंदाजा लगाया कि तुम मेरी ही चिंता कर रही होंगी।..
मै तुम्हारे साथ जाऊ… और फिर वापस अकेली वापस आऊँ… तो तुम्हे भगाने का इल्जाम मेरे सर आये….फिर लीलावती मुझे सजा करे या नौकरी से निकाल दें !ऐसा सोच रही हो ना ?
‘अरे वाह ! तू तो बाबा मेरी अन्तर्यामी हो गई।
सुरसुन्दरी सरिता से लिपट गयी। और यदि आप फरमाए तो मै आपकी साथी हो जाऊं !
नहीं.. नहीं सरु ! मेरे साथ रहकर तो तू दुःखी दुःखी हो जायेगी ! मै तो हु ही अभागिन ! तू मुझे सहयोग दे यही काफी है। पर तु मुझे बता दें के कही तेरे पर मुझे भगाने का इल्जाम तो नही आएगा न ?
नही तुम बिल्कुल निश्चित रहना। तुम्हारा नवकार मंत्र मेरी भी रक्षा करेगा। मेरी सुरक्षा के लिए तुम थोड़ा जाप और ज्यादा कर लेना। करोगी न ?
सुरसुन्दरी जैसे अपने दुःख भूल गईं.. सरिता की बातों ने उसके दिल पर का बोझ हल्का कर दिया।
मै तो लीलावती को कहूंगी कि अच्छा ही हुआ जो वह सुन्दरी भाग गयी.. वर्ना वो जगदम्बा तो तुम्हारे इस भवन को राख कर डालती ! उसका यक्षराज आकर अपन सबको जिंदा ही कच्चा चबा जाता ! सुरसुन्दरी मुँह में साड़ी का आँचल भर कर हँसने लगी। सरिता भी हँस पड़ी ! सुरसुन्दरी ने दूध पी लिया और सरीता से कहा आज तो थाली भर कर खाना लाना। पेट भर कर खाऊँगी !
खाओगी ही न ! कल जो दौड़ लगानी है !
तेरी तर्कशक्ति काबिले-तारीफ़ है। सरिता हँसती हँसती चल दी।

आगे अगली पोस्ट मे…

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