मुत्यु जय अपने विशेष सैनिक दस्ते को साथ लेकर , विमलयश के आदमियों के साथ समुद्र के किनारे पर जा धमका। अमरकुमार उसे किनारे पर ही मिल गया ।
‘सेनापतिजी , यह है अमरकुमार सार्थवाह …’
विमलयश के आदमियों ने अमरकुमार की पहचान करवायी ।
श्रेष्ठि , यह है हमारे सेनापति मुत्यु जय । आपको मिलने के लिये यहाँ पर पधारें है ।’ आदमियों ने सेनापति की पहचान करवाकर आने का कारण बताया … इतने में तो मुत्यु जय बोल उठा…
‘मिलने के लिये नहीं आया हूं… सार्थवाह… तुम्हारे जहाजों की मुझे तलाशी लेना है ।’
‘पर क्यों ?
‘हमारे महाराजा विमलयश के महल में से आज ही चोरी हुई है और उस चोरी का माल तुम्हारे जहाजों में होने का शक है…।’
‘आप क्या बोल रहे है सेनापतिजी ? आपके महाराजा के वहाँ चोरी हो और माल मेरे जहाजों में आ जाये ? अशक्य । बिल्कुल संभव नहीं है…’
‘सार्थवाह , पर देख लेने में हर्जा क्या है ? यदि माल नहीं मिला तो तुम निर्दोष सिद्ध हो जाओगे… और अगर माल मिल गया तो कारावास में मैं तुम्हें पहुँचा दूंगा…’
‘ठीक है… तलाशी ले सकते हो … पर इस तरह परदेशी सार्थवाह को परेशान करना तुम्हें शोभा नहीं देता …. ।।’ अमरकुमार बौखला उठा ।
‘और परदेश में आकर… राजमहल में चोरी करना तुम्हे भी शोभा नही देता , सार्थवाह … समझे ना ?’
‘पहले चोरी साबित करो … बाद में इलजाम लगाना।, अमरकुमार गुस्से से तडप उठा ।
मुत्यु जय ने अपने सैनिकों को , विमलयश के आदमियों के साथ जहाजों की तलाशी लेने के लिये भेजा। अमरकुमार ने भी अपने आदमी साथ में भेजें । मुत्यु जय अमरकुमार के पास ही बैठा ।
करीबन एक प्रहर बीत गया….
सेनिकलोग विमलयश के नाम से अंकित स्वर्ण अलंकार लेकर किनारे पर आये। अमरकुमार के आदमियों के चेहरे उतरे हुए थे। अमरकुमार ने आते ही अपने आदमियों से पूछा ।
‘क्यों क्या हुआ ?’
क्या होना था ? चोरी का माल मिल गया सेठ। तुम्हारे जहाजों में से ।’ सैनिकों ने अलंकारों का ढेर कर दिया मुत्यु जय के सामने। मुत्यु जय ने अमरकुमार के सामने देखा … अमरकुमार हत:प्रभ सा हो गया … उसकी आंखों में भय तैर आया ।
‘कहिये…सार्थवाह…यह क्या है ? क्या देश – विदेश में घूम कर … इस तरह चोरियां कर – कर के ही करोड़ों रूपये कमाये हो क्या ?’
आगे अगली पोस्ट मे…