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किये करम ना छूटे – भाग 2

‘स्वामिन आपकी बात सच है । मुनि एकाग्रचित होकर ध्यान कर रहे है…. पर इन्हें विचलित करने का कार्य हमारे लिये सरल होता है  ! रूपवती को देखकर बड़े बड़े जोगी-जात और साधु सन्यासी भी चंचल हो जाते है । कितने ही उदारण मिलते है   !’

‘देवी, चंचल और चलित हो जाने वाले वे जोगी-जति और होंगे  ! ये महामुनि तो स्वर्ग में से रंभा या उर्वशी उतर आये तो भी विचलित नही होने के  !’

‘ओहो  ! अरे, स्वर्ग की रंभा की जरूरत क्या है   ? जमीन पर ही रंभा भी इन्हें विचलित करने को पर्याप्त है । आपको देखना है तो देखो, मै इन्हें चुटकी बजाते हुए चलित कर देता हूं  !’

‘देवी, नादानी मत करो… ये तो योगी है योगी  ! योगी की परख नही की जाती । इसमें कुछ सार नही निकलेगा…. नाहक अनर्थ हो जायेगा  !’

‘अरे, देखिये  ! मै अभी सार निकालती हूं….!’

रेवती ने मुनि के सामने गीत और नृत्य करना प्रारंभ किया । मुनि के समीप जाकर, सन्मुख जाकर नजरों के तीर फेंकने लगी…।उत्तेजित बनाये वैसे हावभाव प्रदर्शित करने लगी । काफी प्रयत्न किया मुनि को रिझाने का  ! दो घड़ी, चार घड़ी बीत गई… फिर भी मुनिराज जरा भी डिगे नही !

रेवती ने मुनिराज के हाथ में से रजोहरण ले लिया । मुहपत्ति ले ली । और मुनिराज की हँसी मजाक उड़ाने लगी….। सताने लगी…।  उनसे घृणा व्यक्त करने लगी… और छह घड़ी बीत  गई…बारह बारह घड़ी बीत गई (करीबन पाँच घंटे का समय )  वह रेवती मुनि को परेशान करती रही… फिर भी मुनि तो निश्चल रहे… निष्प्रकंप रहे, तब राजा ने जाकर पुनः रेवती से कहा :

‘रेवती, अब बस कर  ! यह कोई ऐरे-गेरे साधु नही है,  ये तो आत्मध्यानी…. अपूर्व को धारण करनेवाले योगीपुरुष है  ।’

रेविती भी थक गई थी । अपनी हार से उसका मन लज्जित हो गया था । मन ही मन उसे पछतावा हो रहा था । इतने में महामुनि ने अपना ध्यान पूरा किया । राजा ने भावपूर्वक वंदना की…और मुनिचरणो में बैठ गया । रानी रेवती भी राजा के पास जाकर चुप-चाप बैठ गई । मुनिराज विशिष्ट ज्ञानी थे । उन्होंने राजा-रानी के उत्तम आत्मद्रव्य को देखा….परखा । उन्हें न तो द्वेष हुआ नही किसी तरह की नाराजगी थी ! समता के सागर वैसे महामुनि ने राजा-रानी को धर्म का उपदेश दिया

आगे अगली पोस्ट मे….

किये करम ना छूटे – भाग 1
November 3, 2017
किये करम ना छूटे – भाग 3
November 3, 2017

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