पांचसौ ब्राह्मण जवानों के सपक्ष तू अकेला क्या कर सकेगा? किसी भी कीमत पर वे लोग तुझे अग्निशर्मा के पास नहीं जाने देंगे । क्या तू हाथपाई करेगा ? मारपीट करेगा ? उन पाँचसौ से तू अकेला निपट लेगा ?’ कुष्णकांत ने साफ साफ शब्दों में कहा :
‘तब फिर क्या करेंगे ?’
‘कुछ दिन यूं ही बीतने दें ।’
‘इसका मतलब महाजन की जीत…. और अपनी हार।’
‘नहीं… यह स्मयसूचकता होगी । लंबी छलांग भरने के लिए पीछे दौड़ लगानी पड़ती है , वैसे ।’
‘मुझे फालतू की दलीलें पसंद नहीं है ।’
‘ठीक है… आप जैसा कहें… वैसा करेंगे ।’
‘यदि मुझे कुछ रास्ता सूझता होता तो तुम तीनों को यहां एकत्र क्यों करता ?’
कुष्णकांत ने कहा : ‘मुझे कुछ उपाय नहीं सूझ रहा है।’
जहरीमल ने कहा : ‘मेरा दिमाग भी काम नहीं करता है।’
शत्रुध्न बोला : ‘मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा कि क्या किया जाए ।’
कुमार ने तीनों मित्रों के सामने देखा और वह खड़ा होकर कमरे में टहलने लगा ।
महाजन महाराजा से मिलने के बाद महामंत्री और सेनापति से भी मिले थे । कुष्णकांत के पिता से मिलकर भी सारी बात कही थी। इसलिए उन लोगों ने अपने-अपने पुत्रों को समझाया था , एवं कुमार को ऐसे दुष्कार्य में साथ नहीं देने की कड़क सुचना की थी ।
कुमार ने तीनों मित्रों को संबोधित करते हुए कहा :
‘ठीक है, जैसी तुम्हारी इच्छा । मैं ढूंढता हूं कुछ उपाय मिल जाए । यदि कुछ सुझा तो तुम्हें बुला लूंगा। फ़िलहाल तो इस बात को यहीं पर समाप्त करें ।’
गुणसेन कुष्णकांत के घर से निकलकर राजमहल में आया। उसे लगने लगा था कि मित्रों ने उसका साथ छोड़ दिया है। उसका मन गुस्सा , हताशा… ओर पहुंचा। कपड़े बदलकर पलंग में ढेर हो गया ।
नगर – श्रेष्ठि की हवेली में महाजन एकत्र हुआ था । सभी के चेहरे पर गंभीरता छाई हुई थी। सभी चुप्पी साधे हुए थे। कुछ देर में पाँच ब्राह्मण अग्रणियों के साथ पुरोहित यज्ञदत्त ने हवेली के मंत्रनाखण्ड में प्रवेश किया । नगरसेठ ने स्वागत करते हुए यज्ञदत्त को अपने समीप बिठाया और कहा :
‘पुरोहितजी , अब तुम निशिंचत रहना । तुम्हारे पुत्र की सुरक्षा का पूरा प्रबंध हमने कर लिया है । अब शायद तो राजकुमार सताने की हिम्मत नहीं करेगा । हम महाराजा से रूबरू मिलकर ही आ रहे हैं । महाराजा को राजकुमार की ऐसी घिनोनी हरकतों के बारे में कुछ मालूम ही नहीं था । उन्होंने हमारी बात शांति से सुनी एवं हमे पूरी तरह आश्वासन देकर भेजा है ।’
‘नगर श्रेष्ठि , शायद कुमार मान जाएंगे । पर उसके दोस्त तो शैतान के अवतार से हैं…. वे लोग…?’
‘पुरोहितजी , हमने उन मित्रों के पिताओं से भी भेंट की है , एवं उन्हें सावधान कर दिये हैं । वे मित्र राजकुमार को सहयोग नहीं देंगे ।’
‘तब तो आपका महान उपकार….।’
आगे अगली पोस्ट मे…