शत्रुध्न बोला : ‘नगर में सर्वत्र अपनी ही चर्चा हो रही है। मुझे भी मेरे पिताजी ने इस बारे में पूछा था ।’
‘तूने क्या जवाब दिया ?’ कुमार ने पूछा ।
मैंने कहा कि बात सही है , परंतु हम तो महाराजकुमार जैसा कहेंगे वैसा करेंगे ।’
‘तुम तीनों मेरे परम विश्वस्त मित्र हो ।’
जहरीमल ने कुमार से पूछा : ‘अब हमें करना क्या है यह बात करें ।’
‘हमें हमारा खेल चालू रखना है ।’
‘पर महाराजा….’
‘महाराजा को मेरी माता सम्हाल लेगी । माता अपनी तरफ है, इसलिए ज्यादा चिंता नहीं है ।’
‘पर महाजन ने रोड़ा अटकाया तो ?’ कुष्णकांत ने पूछा।
‘नगर के ब्राह्मण भी बिफर चुके है ।’ शत्रुध्न ने कहा ।
‘महाजन और ब्राह्मणों की जमात को उस अग्निशर्मा के लिए काफी प्यार उभर आया है…. पर तुम चिंता मत करो…. उन लोगों को तो मैं देख लूंगा ।’ गुस्से से गुणसेन का चेहरा रक्तिम हो उठा था ।
तीनों मित्र मौन हो गये थे। कुमार बोला :
‘मैंने तो उस पुरोहित-पुत्र के साथ खेल करने की कई नई नई तरकीबें सोच रखी हैं। और इस तरह हमें खेलने की भी स्वतंत्रता न हो, तब फिर इस राज्य में क्यों रहना चाहिए ?’
तीनो मित्र कुछ बोल नहीं रहे थे । जमीन पर नजरें गड़ाये वे बैठे रहे । कुमार ने कहा :
‘कल शिकारी कुते के साथ अग्निशर्मा को भिड़ाना है। अग्निशर्मा को कटारी देने की… और शिकारी कुते को उसकी और खुला छोड़ देने का । वह युद्ध देखने का मजा आएगा ।’
कुष्णकांत ने मौन तोडा । उसने कहा : ‘शिकारी कुत्ता ब्राह्मण-पुत्र को बुरी तरह घायल कर डालेगा…. उसके शरीर को क्षत-विक्षत कर डालेगा , इससे तो ब्राह्मण लोगों का गुस्सा और खोल उठेगा । महाजन भी झुंझला उठेगा… इसका परिणाम अच्छा नहीं आएगा ।’
‘परिणाम चाहे सो आये… देखा जाएगा… परंतु यह खेल तो हमें कल हर हाल में करना ही है ।’ कुमार ने मजबूती से अपना इरादा दोहराया ।
कुष्णकांत बोला : ‘मैंने सुना है कि अग्निशर्मा को अब महाजन की सुरक्षा में रखा जाएगा… या तो पुरोहित के घर के इर्दगिर्द पांचसौ ब्राह्मण जवान रात-दिन चौकन्ने चौकन्ने होकर बैठे रहेंगे… फिर ऐसे में अग्नि को उठा लाने का कार्य ??’
‘तेरे से नही होगा’ यही कहना है ना तेरा ? ठीक है, इसकी फ़िक्र मत करो… मैं खुद लेने जाऊँगा उसे । किसी भी तरह से उसे उठा लाऊंगा । तुम तो बस गधे को सजाकर तैयार रखना ।’
आगे अगली पोस्ट मे…